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________________ 218... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक मन स्थिर बनता हो, विधायक सोच उत्पन्न होती हो, सामायिक के लिए वह शुद्ध क्षेत्र है। 3. कालशुद्धि- जैन मुनि की सामायिक सर्वकालिक होती है अतः उसकी सामायिक के विषय में काल शुद्धि का प्रश्न नहीं हो सकता है, लेकिन गृहस्थ साधक के लिए इसकी काल - मर्यादा निश्चित की गई है। काल का अर्थ समय है। योग्य समय पर सामायिक करना काल शुद्धि है जैसेप्रात:काल, सायंकाल, गृह का आवश्यक कार्य निपट गया हो, वह काल, पर्व काल आदि। इन कालों में की गई सामायिक काल की अपेक्षा शुद्ध मानी गई है। अपने निमित्त से पारिवारिक कार्य रूकता हो, क्लेश बढता हो, चित्त अशान्त बनता हो, धर्म की निन्दा होती हो, उस समय सामायिक लेकर बैठ जाना अशुद्धकाल है। बहुत से साधक जब जी चाहा, सामायिक करने बैठ जाते हैं। ऐसी सामायिक पूर्ण फलदायी नहीं होती है अतः 'काले कालं समायरे' - जिस कार्य का जो समय हो, उस समय वही कार्य करना चाहिए, यही कालशुद्धि है। सामायिक की साधना का काल दिवस एवं रात्रि की दोनों सन्धिवेलाएँ मानी गई हैं। आचार्य अमृतचन्द्र ने भी इस मत का समर्थन किया है। 17 दोनों सन्धिकालों में सामायिक करना निम्नतम सीमा है। अधिकतम कितनी की जाए, यह साधक की क्षमता पर निर्भर है। यद्यपि आगम - साहित्य में समयावधि का विधान नहीं है, तथापि श्वेताम्बर एवं दिगम्बर के परवर्तीकालीन ग्रन्थों में सामायिक - व्रत की समयावधि एक मुहूर्त्त (48 मिनिट) स्वीकारी गई है। 18 4. मनः शुद्धि - मन की अशुभ प्रवृत्ति को रोकना मनः शुद्धि है। यह सभी जानते हैं कि मन का कार्य विचार करना है। फलतः आकर्षण, विकर्षण, कार्याकार्य आदि सब कुछ विचारशक्ति पर ही निर्भर हैं। और तो क्या, हमारा सारा जीवन ही विचार है। विचार ही हमारा जन्म है, मृत्यु है, उत्थान है, पतन है, सब कुछ है। विचारों का वेग अन्य सब वेगों की अपेक्षा तीव्र है। आधुनिक विज्ञान कहता है कि प्रकाश की गति एक सेकण्ड में 1,80,000 मील है, विद्युत की गति 2,88,000 मील है, जबकि विचारों की गति 22,65, 120 मील है।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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