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________________ 216... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... बंजर भूमि, वातावरण शान्त हो या कोलाहल भरा, प्रत्येक स्थिति में प्रसन्न रहना, तनावमुक्त रहना, चित्त को शांत रखना क्षेत्र सामायिक है। 5. काल सामायिक- शीतकाल हो या उष्णकाल, अनुकूल प्रसंग हो या प्रतिकूल, उनका मानसपटल पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ना, उनसे व्याकुल नहीं होना काल सामायिक है। 6. भाव सामायिक- शत्रु हो या मित्र, स्वजन हो या अन्यजन, सभी के प्रति एक-सा भाव रखना, समान आचरण करना, हृदय में प्रमोदभाव उत्पन्न होना तथा आत्मभाव में विचरण करना भाव सामायिक है। __यहाँ सामायिक के छ: प्रकारों का जो उल्लेख किया गया है, उसका तात्पर्य यह है कि 'करेमिभंते' के पाठपूर्वक एक आसन पर बैठना ही सामायिक नहीं है, अपितु प्रतिकूल पदार्थों का संयोग होने पर, प्रतिकूल स्थान मिलने पर, प्रतिकूल प्रसंगों के उपस्थित होने पर द्वेष नहीं करना और अनुकूल संयोगादि के होने पर राग नहीं करना ही सामायिक है। इस प्रकार की सामायिक साधना कभी भी की जा सकती है। वर्तमान युग में द्रव्य सामायिक का प्रचलन विशेष है। आत्मजिज्ञासु साधकों को भाव सामायिक के प्रति भी ध्यान देना चाहिए। निष्पत्ति- यदि ऐतिहासिक दृष्टि से अवलोकन करें, तो पूर्वोक्त प्रकारों की विस्तृत चर्चा आवश्यकचूर्णि में उपलब्ध होती है। आवश्यकचूर्णिकार जिनदासगणिमहत्तर ने भावसामायिक का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए सामायिक को आधमंगल माना है।16 इस विश्व में जितने भी द्रव्यमंगल हैं, वे सभी अमंगल के रूप में परिवर्तित हो सकते हैं, परन्तु सामायिक ऐसा भावमंगल है जो कभी भी अमंगल नहीं हो सकता। समभाव की साधना सभी मंगलों का मूल केन्द्र है। संसार में कार्य करने का उतना महत्त्व नहीं है, जितना महत्त्व कार्य को सही तरीके से किया जाए, उस पद्धति का है। सही रूप में किया गया थोड़ा कार्य भी अच्छे परिणाम ला देता है अत: सामायिक के सम्बन्ध में भी यही बात है। सामायिक शुद्धि के प्रकार जैनाचार्यों ने द्रव्य-सामायिक सम्बन्धी छ: प्रकार की शुद्धियाँ बताई हैं। सामायिक अंगीकार करते समय इन शुद्धियों का होना अनिवार्य माना है। ये
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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