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सामायिक व्रतारोपण विधि का प्रयोगात्मक अनुसंधान ...215 सामायिक है। परम्परानुसार गृहस्थ की सामायिक 48 मिनट (एक मुहूर्त) की होती है। वह अपनी शक्ति एवं स्थिति के अनुसार क्रमश: एक से अधिक सामायिक कर सकता है। श्रमण की सामायिक यावज्जीवन के लिए होती है।
त्रिविधभेद- आचार्य भद्रबाहु ने सामायिक के तीन भेद किए हैं- .
1. सम्यक्त्व सामायिक 2. श्रुत सामायिक और 3. चारित्र सामायिक।15
सम्यक्त्व सामायिक का अर्थ- सम्यग्दर्शन, श्रुतसामायिक का अर्थसम्यगज्ञान और चारित्रसामायिक का अर्थ-सम्यक् चारित्र है। समभाव की साधना के लिए सम्यक्त्व और श्रुत-ये दोनों आवश्यक माने गए हैं। सम्यक्त्व के बिना श्रुत सम्यक् नहीं होता तथा इन दोनों के बिना चारित्र सम्यक् नहीं होता।
जैन आचार की दृष्टि से सम्यक्त्वव्रत ग्रहण करना सम्यक्त्व सामायिक और श्रृत सामायिक है, बारहव्रत स्वीकार करना देशविरति सामायिक है और दीक्षा अंगीकार करना चारित्र सामायिक है। जैन इतिहास की दृष्टि से देखा जाए तो आगमग्रन्थों, मूलसूत्रों एवं छेदसूत्रों में सामायिक के त्रिविध भेद की चर्चा लगभग उपलब्ध नहीं होती है, केवल आवश्यकसूत्र पर लिखा गया टीका-साहित्य ही इस चर्चा का प्रतिपादन करता है। इसके परवर्तीकालीन ग्रन्थकारों ने इन्हें व्रत विशेष में समाहित कर लिया है।
षडविधभेद- जैन ग्रन्थों में सामायिक के छ: प्रकार भी बताए गए हैं। वे निम्न हैं___ 1. नाम सामायिक- कोई हमें शुभनाम से बुलाए या अशुभ नाम से पुकारे, उस नाम का श्रवण कर अन्तर्मानस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना, अथवा सामने वाले के प्रति राग-द्वेष का भाव न आना नाम सामायिक है।
2. स्थापना सामायिक- आकर्षक वस्तुओं को देखकर राग नहीं करना और घृणित वस्तुओं को देखकर द्वेष नहीं करना स्थापना सामायिक है।
3. द्रव्य सामायिक- स्वर्ण और मिट्टी-दोनों प्रकार के पदार्थों में समभाव रखना द्रव्य सामायिक है यानी सुवर्ण के प्रति आसक्त नहीं बनना और मिट्टी के प्रति निर्लेप नहीं रहना दोनों में समान बुद्धि रखना द्रव्य सामायिक है।
4. क्षेत्र सामायिक- चाहे महल हो या उपवन, समतल भूमि हो या