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214... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक ....
इस तरह स्व-स्वभाव में स्थित होना सामायिक है। सामायिक के लक्षण
सामायिक तीन प्रकार की बताई गई है। प्रथम सम्यक्त्व सामायिक का लक्षण है-तत्त्वश्रद्धा, श्रुतसामायिक का लक्षण है-तत्त्वपरिज्ञान, चारित्रसामायिक का लक्षण है-सावद्ययोगविरति।13 सामायिक का रूढ़ार्थ
सामायिक एक पवित्र और विशुद्ध क्रिया है। इसका रूढार्थ यह है कि पवित्र-एकान्त स्थल पर, ऊनी आसन बिछाकर एवं शुद्धवस्त्र पहन कर कम से कम दो घड़ी (48 मिनट) तक ‘करेंमिभंते' के पाठपूर्वक सावद्य-व्यापारों का त्याग करना तथा स्वाध्याय-जाप-धर्म आदि का चिंतन करना सामायिक है। वर्तमान युग में सामायिक का यही अर्थ प्रचलित है। सामायिक के पर्यायवाची
जैन ग्रन्थों में सामायिक के आठ पर्यायवाची बतलाए गए हैं1. सामायिक-समताभाव रखना 2. समयिक-सभी जीवों के प्रति दयाभाव रखना 3. सम्यवाद-विषमता और ममत्व का त्याग कर यथास्थित रहना 4. समास-थोड़े अक्षरों से अर्थ को जानना 5. संक्षेप-संक्षिप्त अक्षरों से अधिक कर्मनाश हो ऐसी अर्थ विचारणा करना 6. अनवद्य-निष्पाप आचरण करना 7. परिज्ञा-सम्यक् प्रकार से पाप प्रवृत्ति का त्याग करना 8. प्रत्याख्यान-छोड़ने योग्य वस्तुओं का त्याग करना।14। ___ उक्त सभी अर्थ सामायिक के सम्बन्ध में घटित होते हैं। सामायिक के भेद, प्रभेद एवं प्रकार
द्विविधभेद- जैन-परम्परा में सामायिक के पात्र की अपेक्षा से दो भेद किए हैं- 1. गृहस्थ की सामायिक और 2. श्रमण की सामायिक। एक अन्य प्रकार से भी सामायिक के द्रव्य और भाव-ये दो भेद बतलाए गए हैं____ 1. द्रव्य सामायिक- सामायिक में स्थित होने के लिए आसन बिछाना, चरवला, मुखवस्त्रिका आदि धार्मिक-उपकरण एकत्रित करना और एक स्थान पर अवस्थित होना यह द्रव्य सामायिक है।
2. भाव सामायिक- द्रव्य आराधनापूर्वक आत्मभावों में लीन रहना भाव