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________________ सामायिक व्रतारोपण विधि का प्रयोगात्मक अनुसंधान ...213 समक्ष तुंगिया नगरी में रहने वाले भगवान् महावीर के श्रमणोपासकों ने जिज्ञासा प्रस्तुत की थी, कि सामायिक क्या है ? और सामायिक का अर्थ क्या है ? उस अणगार ने कहा- आत्मा ही सामायिक है और आत्मा ही सामायिक का अर्थ है। आत्मा की स्वाभाविक स्थिति को प्राप्त करना, उसमें तल्लीन होना-यही सामायिक है। आचार्य भद्रबाहु ने आवश्यकनियुक्ति में कहा है- जिसकी आत्मा संयम, तप और नियम में संलग्न रहती है, वही शुद्ध सामायिक है।10 आचार्य हरिभद्रसूरिजी ने लिखा है कि मोक्ष का प्रधान कारण सामायिक है। जिस प्रकार काटने वाली कुल्हाड़ी को चन्दन सुगन्धित बना देता है, उसी प्रकार जो साधना विरोधी के प्रति भी समभाव की सुगन्ध पैदा करती है, वही शुद्ध सामायिक है।11 आवश्यकमलयगिरि टीका के अनुसार सावद्ययोग(पाप-व्यापार) से रहित, तीन गुप्तियों से युक्त, षड्जीवनिकायों में संयत, उपयोगवान्, यतनाशील आत्मा ही सामायिक है।12 इस तरह आत्मा ही सामायिक है अथवा सामायिक आत्मा की शुद्ध अवस्था का नाम है। सामायिक की मौलिक परिभाषाएँ सामायिक की कतिपय परिभाषाएँ निम्न हैं-सामायिक अर्थात राग-द्वेष रहित अवस्था • पीड़ा का परिहार स समभाव की प्राप्ति . सर्वत्र तुल्य व्यवहार • ज्ञान-दर्शन-चारित्र का पालन • चित्तवृत्तियों के उपशमन का अभ्यास • समभाव में स्थिर रहने का अभ्यास • सर्वजीवों के प्रति समान वृत्ति का अभ्यास . सर्वात्मभाव का अभ्यास . 48 मिनट का श्रमण जीवन • संवर की क्रिया, आस्रव का वियोग • सद्व्यवहार • आगमानुसारी शुद्ध जीवन जीने का अनुपम प्रयास स समस्थिति स विषमता का अभाव • बन्धुत्वभाव का शिक्षण • शान्ति की साधना • अहिंसा की उपासना • श्रुतज्ञान की सात्त्विक आराधना • अन्तर्दृष्टि का आविर्भाव • उच्चकोटि का आध्यात्मिक अनुष्ठान • अन्तर्चेतना में निहित स्वाभाविक गुणों का प्रकटीकरण • स्वयं की सहज पर्यायों को स्वयं में अनुभूत कर देखने की सहज क्रिया • ममत्वयोग से हटकर अन्त:करण को समत्वयोग में नियोजित करना।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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