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212... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... में प्रतिकूल प्रसंगों के आने पर अपने आप को तटस्थ बनाए रखा, विचलित नहीं हुए तथा संगम, चण्डकौशिक, शूलपाणियक्ष जैसे भयंकर उपसर्ग करने वाले जीवों के प्रति भी करूणा, दया एवं मैत्री भाव से परिपूर्ण रहे। यही सामायिक की सच्ची साधना है। सामायिक शब्द का अर्थ
जैनाचार्यों ने सामायिक के विभिन्न अर्थ किए हैं 1- 'सम' उपसर्ग पूर्वक, गति अर्थ वाली 'इण्' धातु से 'समय' शब्द निष्पन्न हुआ है। सम्एकीभाव, अय-गमन अर्थात एकीभाव द्वारा बाह्य-परिणति से पुन: मुड़कर आत्मा की ओर गमन करना सामायिक है। __जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण के अनुसार राग-द्वेष के कारणों में मध्यस्थ रहना सम है। मध्यस्थ भावयुक्त साधक की मोक्ष के अभिमुख जो प्रवृत्ति है, वही सामायिक है।
सम का अर्थ है-आत्मभाव और अय का अर्थ है-गमन। जिसके द्वारा परपरिणति से आत्मपरिणति की ओर जाया जाता है, वही सामायिक है।
सम्+अयन+इक् से भी सामायिक शब्द निष्पन्न होता है। मोक्षमार्ग के साधन ज्ञान, दर्शन और चारित्र 'सम' हैं तथा उसमें 'अयन'- प्रवृत्ति करना सामायिक है।
सम् शब्द सम्यक् का द्योतक भी है और अयन का एक अर्थ आचरण है। इस दृष्टि से श्रेष्ठ या सम्यक आचरण सामायिक है।
उत्तराध्ययनसूत्र में सुख-दुःख, जीवन-मरण, लाभ-अलाभ, निन्दाप्रशंसा में समभाव रखने को सामायिक कहा है। यही बात मूलाचार में भी कही गई है।
वर्तमान परम्परा के अनुसार सावद्ययोग का परित्याग कर शुद्ध स्वभाव में रमण करना 'सम' है और जिस साधना के द्वारा उस 'सम' की प्राप्ति हो, वह सामायिक है। . भगवद्गीता में समता को योग कहा गया है-समत्वं योगमुच्यते।
निश्चयनय की दृष्टि से आत्मा ही सामायिक है और आत्मोपलब्धि होना ही सामायिक का अर्थ है। भगवतीसूत्र में वर्णन आता है कि प्रभु पार्श्वनाथ की परम्परा का पालन करने वाले श्री कालास्यवेषी अणगार के