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________________ 208... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... . . 64. उपासकदशा, मधुकरमुनि, 1/51 65. उपासकदशा, पृ.22-38 66. उपासकदशा के प्रथम अध्याय में इनमें से इक्कीस वस्तुओं का निर्देश मिलता है। उपासकदशा, मधुकरमुनि, 1/22-38 67. (क) रत्नकरण्डक श्रावकाचार, गा.-87 (ख) उपासकदशा, 728 (ग) सागारधर्मामृत, 5/14 68. सर्वाथसिद्धि, 7/2 69. जैन आचार:सिद्धान्त और स्वरूप, देवेन्द्रमुनि, पृ.323 70. उपासकदशा, 1/51 71. रत्नकरण्डक श्रावकाचार, 90 72. उपासकदशा, 1/51 73. (क) उवासगदसाओ, 1/47 (ख) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अणुव्रत 74. सागारधर्मामृत, 5/21, 23 75. योगशास्त्र, 3/98-100 76. श्रावकप्रज्ञप्ति, गा.-289 77. उपासकदशा, 1/43 78. योगशास्त्र, 3/78-80 79. रत्नकरण्डक श्रावकाचार, 80 80. वही, 75 81. पुरूषार्थसिद्धयुपाय, 145 । 82. आजकल कुछ लोग एक-एक वर्ष की मर्यादापूर्वक भी बारहव्रत ग्रहण करते हैं। संभवत: यह अपवादमार्ग है। 83. श्रावकप्रज्ञप्ति, गा.-292 84. उपासकदशा, 1/53 85. उपासकदशा, 1/41 86. योगशास्त्र, 3/84 87. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भा.-2, पृ.-450 88. रत्नकरण्डक श्रावकाचार, 95 89. उपासकदशा, 1/54
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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