________________
196... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक ....
भावार्थ- हे भगवन् ! मैं आपके समीप सामायिक, देशावगासिक, पौषधोपवास एवं अतिथिसंविभागवत धारण करने का नियम यावज्जीवन के लिए यथाशक्तिपूर्वक स्वीकार करता हूँ।
• उक्त विधिपूर्वक बारहव्रत का उच्चारण करवाने के बाद शुभलग्न का समय आ जाने पर “इच्चेयं सम्मत्तमूलं पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं सावगधम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरामि'' इतना पाठ तीन बार बुलवाएं।
• उसके बाद गुरू व्रतग्राही के मस्तक पर वासचूर्ण डालें। फिर वासअक्षत को पूर्ववत् अभिमन्त्रित कर जिनबिम्ब के चरणों में निक्षेपित करें। • तदनन्तर व्रतग्राही सात बार खमासमणसूत्र-पूर्वक वंदन करें। इस वंदन क्रिया के दौरान व्रतग्राही श्रावक गृहीत व्रत के विषय में अन्यों को सूचित करने की अनुमति ग्रहण करता है, चतुर्विध-संघ द्वारा व्रतधारी को अक्षतों से बधाया जाता है, गुरू द्वारा मंगलवचन कहे जाते हैं, देशविरतिव्रत में स्थिर होने के निमित्त कायोत्सर्ग करवाया जाता है। • तदनन्तर व्रतग्राही उपवास आदि तप का प्रत्याख्यान करें। उसके बाद गुरू से धर्मदेशना हेतु निवेदन करें। तब गुरू व्रत की महिमा एवं उसकी सार्थकता के सम्बन्ध में प्रवचन करें और व्रतधारी को विशेष अभिग्रह दिलाएं।
इस व्रतारोपण संस्कार-विधि के सम्बन्ध में यह ज्ञात करना आवश्यक है कि साधक बारहव्रत के दंडक का उच्चारण करने के बाद अपने हाथ में परिमाण-पत्रक ग्रहण करें और प्रत्येक व्रत के बारे में यथाशक्ति मर्यादा धारण करें। जिन पापकार्यों आदि का त्याग न कर सके, उनके विषय में विवेक रखने का संकल्प करें। जिन पापकार्यों का सर्वथा त्याग कर सकें, उनका पूर्णत: परित्याग करें। जिन पदार्थों के विषय में संख्या, वजन, पल आदि का निर्धारण करना संभव हो, वहाँ वैसा करें। इस प्रकार परिमाण-पत्रक में उल्लिखित नियमों की यथासंभव परिसीमाएँ बांधे।129
पूर्वोक्त बारह व्रतारोपणविधि खरतरगच्छ आम्नाय के अनुसार उल्लिखित की गई है।
तपागच्छ परम्परा में यह विधि लगभग पूर्ववत् की जाती है, केवल देववन्दन के अवसर पर बोले जाने वाले स्तोत्र, स्तुति के पाठों एवं कायोत्सर्ग