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बारहव्रत आरोपण विधि का सैद्धान्तिक अनुचिन्तन ...195 5. स्थूलपरिग्रहपरिमाण व्रत- 'अहं णं भंते तुम्हाणं समीवे परिग्गहं पडुच्च अपरिमियपरिग्गहं पच्चक्खामि। धणधन्नाइ-नवविह-वत्थुविसयं इच्छापरिमाणं उवसंपज्जामि, अहागहियभंगएणं, जावज्जीवाए... वोसिरामि।'
भावार्थ- हे भगवन् ! मै आपके समीप धन-धान्यादि नौ प्रकार के परिग्रह का यावज्जीवन के लिए यथाशक्तिपूर्वक परिमाण करता हूँ।
6. दिशापरिमाण व्रत- 'अहं णं भंते तुम्हाणं समीवे गुणव्वयतिए उड्ढअहोतिरियगमणाविसयं दिसिपरिमाणं पडिवज्जामि, जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं अहागहिय भंगेणं मणेणं .................. वोसिरामि।'
भावार्थ- हे भगवन् ! मैं आपके समीप ऊर्ध्व, अधो एवं तिर्यक्-कुल दस प्रकार की दिशाओं में आने-जाने का यावज्जीवन के लिए यथाशक्तिपूर्वक परिमाण करता हूँ। ___7. उपभोगपरिभोगपरिमाण व्रत- 'अहं णं भंते ! तुम्हाणं समीवे उवभोग-परिभोगवए भोयणओ अणंतकाय-बहुवीय-रायभोयणाई परिहरामि! कम्मओणं पन्नरसकम्मदाणाइं इंगालकम्माइयाई बहुसावज्जाइं खरकमाइयं रायनिओगं च परिहरामि, जावज्जीवाए ........ वोसिरामि।' ___भावार्थ- हे भगवन् ! मैं आपके समीप भोजन सम्बन्धी अनन्तकाय, बहुबीज, रात्रिभोजन आदि न करने का और पन्द्रह प्रकार के कर्मादानादि व्यापार न करने का यावज्जीवन के लिए त्याग करता हूँ।
8. अनर्थदण्डविरमण व्रत- 'अहं णं भंते ! तुम्हाणं समीवे अणत्थदंडे अवझाण-पावोवएस-हिंसोवकरणदाण-पमायायरियरूवं चउविहं अणत्थदंडं जहासत्तीए परिहरामि। जावज्जीवाए ............. वोसिरामि।'
भावार्थ- हे भगवन् ! मैं आपके समीप अपध्यान, पापोपदेश, हिंसा उपकरण-दान एवं प्रमादाचरण-इन चार प्रकार के अनर्थदण्ड का यावज्जीवन के लिए यथाशक्तिपूर्वक त्याग करता हूँ।
9. सामायिक देशावगासिक पौषधोपवास अतिथिसंविभाग व्रत- 'अहं णं भंते ! तुम्हाणं समीवे सामाइयं देसावगासियं पोसहोववासं अतिहिसंविभागवयं च जहासत्तीए पडिवज्जामि, जावज्जीवाए अहागहियभंगएणं दुविहं ................... वोसिरामि।'