________________
बारहव्रत आरोपण विधि का सैद्धान्तिक अनुचिन्तन ...193 आचारदिनकर आदि ग्रन्थों में उपलब्ध होता है। ये रचनाएँ वैधानिक-ग्रन्थों में अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं। यद्यपि इन ग्रन्थों में यह विधि किंचित् अन्तर के साथ उल्लिखित है, किन्तु मूलविधि प्रायः समान है। इससे परवर्ती ग्रन्थों में उक्त कृतियों के आधार पर किया गया संकलित संग्रह ही देखने में आया है। कहीं-कहीं गच्छीय परम्परा के अनुसार उनमें यत्किंचित् परिवर्तन अवश्य किया गया है। बारहव्रत आरोपण विधि
• विधिमार्गप्रपा के अनुसार बारहव्रत ग्रहण करने का इच्छुक गृहस्थ सर्वप्रथम शुभदिन में जिनमन्दिर या समवसरण की पूजा करें। • फिर बढ़ती हुई अक्षत की तीन मट्ठियों द्वारा उसकी अंजली को भरा जाए। उसके बाद व्रतग्राही एक-एक नमस्कारमन्त्र का स्मरण करते हुए समवसरण की तीन प्रदक्षिणा दें। • फिर एक खमासमणसूत्रपूर्वक वन्दन कर ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें। • पुनः एक खमासमणपूर्वक देशविरति स्वीकार करने के निमित्त गुरू से देववन्दन करवाने और वासचूर्ण डालने का निवेदन करें। तब गुरू अभिमन्त्रित वास को व्रतग्राही के मस्तक पर डालें और संघसहित देववन्दन करवाएं।
यहाँ देववन्दन-विधि 'सम्यक्त्वारोपणविधि' के समान जाननी चाहिए।
• तदनन्तर व्रतग्राही एक खमासमणपूर्वक देशविरति-सामायिकव्रत को सम्यक् प्रकार से ग्रहण करवाने के लिए गुरू से निवेदन करें। फिर गुरू की आज्ञापूर्वक सत्ताईस श्वासोश्वास परिमाण लोगस्ससूत्र का चिंतन करें। किन्हीं परम्परा में यहाँ गुरू भी कायोत्सर्ग करते हैं। • उसके बाद व्रतग्राही एक खमासमणसूत्र-पूर्वक वन्दन कर देशविरतिव्रत (बारहव्रत) ग्रहण करवाने एवं ग्रहण करने के लिए गुरू महाराज से निवेदन करें। तब गुरू तीन बार नमस्कारमन्त्र के स्मरणपूर्वक बारहव्रत सम्बन्धी आलापक पाठ को तीन-तीन बार बुलवाएं। __ उस समय व्रतग्राही शिष्य करयुगल में मुखवस्त्रिका और चरवला ग्रहण करके संपुटमय दोनों हाथों को ललाट पर रखते हए और अर्द्धावनत मद्रा में स्थित होकर आलापक-पाठ को त्रियोगपूर्वक ग्रहण करें। बारहव्रत के प्रतिज्ञापाठ निम्न हैं
1. स्थूलप्राणातिपातविरमण व्रत- 'अहं णं भंते तुम्हाणं समीवे थूलगं