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192... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक ....
संलेखना आदि के अतिचारों का वर्णन है। इसी के साथ आचार्य सोमदेव(10वीं शती) के यशस्तिलकचम्पू के छठवें, सातवें एवं आठवें अध्याय में, आचार्य देवसेन (10 वीं शती) के भावसंग्रह में, आचार्य अमितगति (10वी शती) कृत उपासकाध्ययन में, आचार्य अमृतचन्द्र (10वीं-11वीं शती) रचित पुरूषार्थसिद्धयुपाय में, आचार्य वसुनन्दि (11-12 वीं शती) के श्रावकाचार में भी श्रावकधर्म का न्यूनाधिक रूप से प्रतिपादन हुआ है। इसके अतिरिक्त पं. आशाधर (1239 ई.) रचित सागारधर्मामृत, सावयधम्मदोहा, मेधावी (वि.सं. 1541) रचित धर्मसंग्रहश्रावकाचार, आचार्य सकलकीर्ति (वि.सं.15वीं-16वीं शती) विरचित प्रश्नोत्तरश्रावकाचार, गुणभूषण (14वीं-15वीं शती) का श्रावकाचार, नेमिदत्त (वि.सं.16वीं शती) रचित धर्मोपदेश-पीयूषवर्ष नामक श्रावकाचार, लाटीसंहिता, पूज्यपादकृत श्रावकाचार, पद्मनन्दि (वि.सं.14वीं शती) विरचित श्रावकाचार, व्रतसारश्रावकाचार, अभ्रदेव (वि.सं.1556-1593) कृत व्रतोद्योतन श्रावकाचार, जिनदेवविरचित भव्यमार्गोपदेश उपासकाध्ययन, शिवकोटि रचित रत्नमाला आदि भी श्रावकधर्म के प्रतिपादक ग्रन्थ हैं। दिगम्बर मान्य पद्मचरित्र के चौदहवें पर्व में, वरांगचारित्र के पन्द्रहवें सर्ग में, वामदेवरचित संस्कृत भावसंग्रह में भी श्रावकधर्म पर विचार किया गया है।
उपर्युक्त श्वेताम्बर और दिगम्बर-दोनों परम्पराओं के श्रावकाचार सम्बन्धी ग्रन्थों के विषय में यह बात उल्लेखनीय है कि इन ग्रन्थों में प्रायः सम्यक्त्व का स्वरूप, सम्यक्त्व के लिंग, सम्यक्त्व की महिमा, अष्टमूलगुण, बारहव्रत, बारहव्रत के अतिचार, ग्यारह प्रतिमा, सप्तव्यसन-त्याग आदि का भावगर्भित प्रतिपादन किया गया है। साथ ही बारहव्रत ग्रहण करने वाले साधक को किनकिन पाप कार्यों का पूर्णत: त्याग करना चाहिए एवं किन-किन प्रवृत्तियों में मर्यादा रखनी चाहिए? आदि का उल्लेख भी किया है। किन्तु बारहव्रत किस विधि पूर्वक अंगीकार किये जाने चाहिए इस सम्बन्ध में कुछ भी नहीं कहा गया है, केवल बारह व्रतों के स्वरूप आदि पर प्रकाश डाला गया है। अनुसंधानात्मक दृष्टिकोण से हमें प्रस्तुत विवरण नवीं-दसवीं शती तक उपलब्ध नहीं होता है। कालान्तर में संभवत: हिन्दु- धर्म के प्रभाव से जैनधर्म में भी विधि-विधान का बाहुल्य बढ़ा। परिणामस्वरूप इस व्रत विधि का सुव्यवस्थित और सुविकसित स्वरूप क्रमश: तिलकाचार्यसामाचारी, सुबोधासामाचारी, विधिमार्गप्रपा,