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________________ बारहव्रत आरोपण विधि का सैद्धान्तिक अनुचिन्तन ...181 विवरण नहीं दिया गया हो। इससे यह बात भी पुष्ट हो जाती है कि बारहव्रत प्रदान करने वाला गुरू भी सम्यक्त्वव्रत प्रदाता की योग्यता से युक्त होना चाहिए। यद्यपि प्रसिद्ध जैनाचार्य हरिभद्रसूरिजी के उल्लेखानुसार द्वादशव्रत स्वीकार करने वाला गृहस्थ अग्रलिखित पन्द्रह लक्षणों से युक्त होना चाहिए1. वह श्रावक अनुष्ठान में प्रीति रखता हो। 2. किसी की निन्दा नहीं सुनता हो। 3. निंदकों पर भी अनुकम्पा या करूणाभाव रखता हो। 4. ज्ञान प्राप्त करने की विशेष रूप से जिज्ञासा रखता हो। 5. धर्म में चित्त की एकाग्रता हो। 6. धर्माचार्य एवं गुरूजनों का विनय करता हो। 7. नियतकाल (त्रिकाल) में चैत्यवन्दन आदि करणीय अनुष्ठान करता हो। 8. धर्म-श्रवणादि कार्यों में उचित आसन पर बैठता हो। 9. युक्त (माध्यम) स्वर से स्वाध्याय करता हो। 10. सतत उपयोगवन्त रहता हो। 11. सम्यक् आचरण से समस्त जनों का वल्लभ(प्रिय) हो। 12. जीविकोपार्जन में अनिंदित-कर्म करता हो। 13. आपत्ति में वीरता (अदैन्यभाव) रखता हो। 14. यथाशक्ति त्याग और तप करता हो। 15. सुलब्ध धर्म में लक्ष्य रखता हो। इन पन्द्रह लक्षणों में से आदि के पाँच धर्म संबंधी, मध्य के पाँच उपासना संबंधी और अन्त के पाँच सद्गृहस्थ संबंधी लक्षण हैं। श्रावकधर्म विधिप्रकरण में उक्त लक्षणों को अत्यावश्यक मानते हुए यह निर्देश भी दिया गया है कि गृहस्थ कथित लक्षणों को आत्मसात कर, फिर श्रावकधर्म को अंगीकार करें, अन्यथा वह सर्वज्ञ की आज्ञा का उल्लंघन करने वाला होता है।116 __इस व्रत के लिए शुभमुहूर्त आदि का विचार सम्यक्त्व व्रत के समान जानना चाहिए। सम्यक्त्वव्रतारोपण के लिए जो नक्षत्र आदि शुभ माने गए हैं उन्हें इस व्रतारोपण के लिए भी उत्तम समझना चाहिए।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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