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बारहव्रत आरोपण विधि का सैद्धान्तिक अनुचिन्तन ...179 दिगम्बर-परम्परा में देशावकाशिक और पौषधव्रत को एक में मिला लिया गया है तथा उस रिक्त स्थान की पूर्ति करने हेतु संलेखनाव्रत का समावेश किया गया है। आचार्य कुन्दकुन्द ने चारित्रप्राभृत111 में, रविषेण ने पद्मचरित्त112 में, प्राकृत भावसंग्रह एवं सावयधम्मदोहा में उक्त क्रम ही बतलाया है। आचार्य उमास्वाति ने तत्त्वार्थसूत्र113 में गुणव्रत और शिक्षाव्रत-यह भेद नहीं करके सात शीलव्रत बतलाए हैं। उनका क्रम इस प्रकार माना है-6. दिग्विरति 7. देशविरति 8. अनर्थदण्ड 9. सामायिक 10. पौषधव्रत 11. उपभोग परिभोगपरिमाण और 12. अतिथिसंविभाग।
इन्होंने संलेखनाव्रत को सम्मिलित नहीं किया है। इससे ज्ञात होता है कि तत्त्वार्थसत्र की श्वेताम्बर-परम्परा के नामों के साथ साम्यता है, मात्र क्रम का अन्तर है।
सुस्पष्ट है कि तत्त्वार्थसूत्र में श्वेताम्बर-परम्परा के दसवें देशावगासिकव्रत को दूसरा गुणव्रत मानकर सातवाँ स्थान दिया गया है तथा श्वेताम्बर-परम्परा के सातवें उपभोग-परिभोगव्रत को तीसरा शिक्षाव्रत मानकर ग्यारहवाँ स्थान दिया गया है तथा श्वेताम्बर-परम्परा के ग्यारहवें पौषधव्रत को दूसरा शिक्षाव्रत मानकर दसवाँ स्थान दिया गया है। आचार्य अमृतचन्द्रकृत पुरूषार्थसिद्धयुपाय, सोमदेवकत उपासकाध्ययन, अमितगतिकृत उपासकाचार, पद्मनन्दिकृत पंचविंशतिका और लाटीसंहिता में भी उपर्युक्त सात शील ही बताए हैं।
दिगम्बर-परम्परा में इस सम्बन्ध में और भी आंतरिक मतभेद हैं। जैसे रत्नकरण्डकश्रावकाचार में देशावगासिक, सामायिक, पौषधोपवास और वैयावृत्य-ये चार शिक्षाव्रत बतलाए हैं।114
हरिवंशपुराण में गुणव्रतों का स्वरूप तो तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार ही है, परन्तु शिक्षाव्रतों में भोगोपभोगपरिमाण के स्थान पर संलेखना को जोड़ा है।115
स्वामीकार्तिकेयानुप्रेक्षा और सागारधर्मामृत में शिक्षाव्रतों का क्रम रत्नकरण्डकश्रावकाचार के अनुसार अपनाया गया है।
इस प्रकार विभिन्न ग्रन्थों में गुणव्रतों और शिक्षाव्रतों का जो क्रम वर्णित है उसका स्पष्टीकरण निम्न तालिका से भी हो जाता है।