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178... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... के आधार पर किया है।
हम देखते हैं कि बारहव्रतों की संख्या एवं बारह-व्रतों के विभाजन को लेकर दोनों परम्पराओं में कोई मतवैभिन्य नहीं है, फिर भी श्वेताम्बर-परम्परा में पाँच अणव्रतों का स्थान मूलगण में है ओर शेष सात व्रत उत्तरगण के रूप में हैं, किन्तु दिगम्बर-परम्परा में श्रावकों के मूलगुण आठ माने हैं और उत्तरगुण बारह माने हैं। दिगम्बर-परम्परा में मद्य, मांस, मधु और पाँच उदुम्बर फलों-इन आठ वस्तुओं के त्याग करने को मूलगुण बताया है और बारहव्रतों को उत्तरगुण कहा है।
पाँच अणुव्रतों के सम्बन्ध में कहीं भी मतभेद नहीं है, उनमें केवल नाम भेद ही है। आचार्य कुन्दकुन्द के चारित्रप्राभृत में पाँचवें अणुव्रत का नाम 'परिग्गहारंभ परिमाण' रखा है एवं चतुर्थ अणुव्रत का नाम ‘परपिम्म परिहार', जिसका अर्थ परस्त्रीत्याग है तथा प्रथम अणुव्रत का नाम 'स्थूलत्रसकायवधपरिहार' रखा है।107 आचार्य समन्तभद्र ने रत्नकरण्डकश्रावकाचार में चौथे अणुव्रत का नाम 'परदारनिवृत्ति' और 'स्वदार सन्तोष' रखा है एवं पाँचवें अणुव्रत का नाम ‘परिग्रहपरिमाण' के साथ 'इच्छापरिमाण' भी रखा है।108 आचार्य रविषेण ने चौथे व्रत का नाम 'परदारसमागम विरति' एवं पाँचवें का 'अनन्तगर्धाविरति' दिया है।109 आदिपुराण में चौथे व्रत का नाम परस्त्रीसेवननिवृत्ति एवं पाँचवें का नाम 'तृष्णाप्रकर्षनिवृत्ति' रखा है।110 इस प्रकार अणुव्रतों में नामभेद अवश्य है, परन्तु क्रम के सम्बन्ध में मतैक्य है।
तीन गुणव्रतों में नाम की एकरूपता होते हुए भी क्रम में अन्तर है। श्वेताम्बर-परम्परा में गुणव्रतों का क्रम इस प्रकार है- 6. दिशा परिमाण व्रत 7. उपभोगपरिभोगपरिमाण व्रत 8. अनर्थदण्डविरमण व्रत।
दिगम्बर-परम्परा में गुणव्रतों का क्रम निम्न है-6. दिशापरिमाण व्रत 7. अनर्थदण्डविरमण व्रत 8. उपभोगपरिभोग परिमाण व्रत।
दोनों परम्पराओं में महत्त्वपूर्ण अन्तर शिक्षाव्रतों के सम्बन्ध में है। श्वेताम्बर-परम्परा में शिक्षाव्रतों का यह क्रम माना गया है- 9. सामायिक व्रत 10. देशावगासिक व्रत 11. पौषधोपवास व्रत और 12. अतिथिसंविभाग व्रत
दिगम्बर-परम्परा में शिक्षाव्रतों का क्रम इस प्रकार है- 9. सामायिकव्रत 10. पौषधव्रत 11. अतिथिसंविभागवत और 12. संलेखनाव्रत।