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बारहव्रत आरोपण विधि का सैद्धान्तिक अनुचिन्तन ...173 पर्यन्त अथवा अहोरात्रि पर्यन्त दो करण एवं तीन योगपूर्वक त्याग करता हूँ।'
इस प्रकार पौषधव्रत में आहार, शरीर विभूषा, अब्रह्मसेवन और व्यापारइन चार प्रकार की प्रवृत्तियों का निश्चित अवधि के लिए त्याग किया जाता है।
पौषधव्रत के अतिचार- इस व्रत के पाँच अतिचार निम्नलिखित है95
1. अप्रतिलेखित दुष्प्रतिलेखित शय्यासंस्तारक- बैठने-सोने योग्य स्थान एवं साधनों का देखे बिना ही उपयोग करना।
2. अप्रमार्जित दुष्प्रमार्जित शय्यासंस्तारक- पौषध में उपयोगी आसन आदि का प्रमार्जन किए बिना ही उपयोग करना।
3. अप्रमार्जित दुष्प्रमार्जित उच्चारप्रस्रवणभूमि- मल-मूत्र के स्थानों का भलीभाँति निरीक्षण किए बिना ही उपयोग करना।
4. अप्रतिलेखित दुष्प्रतिलेखित उच्चारप्रस्रवणभूमि- मल-मूत्र के स्थानों का सम्यक् प्रमार्जन किए बिना ही उपयोग करना।
5. पौषध सम्यगननुपालनता- पौषध के नियमों का विधिवत पालन नहीं करते हुए प्रमाद आदि करना।
पौषधोपवास व्रत की उपादेयता- यह व्रत मुख्य रूप से निवृत्तिपरकजीवन की साधना के निमित्त किया जाता है। इस व्रत की प्राथमिक उपादेयता विषय-वासनाओं पर नियन्त्रण करना है। उपवास द्वारा विषय-वासनाओं पर स्वयमेव नियन्त्रण हो जाता है। एक अहोरात्रि के लिए सांसारिक-व्यापारों से मुक्त होकर निरन्तर धर्मक्रिया में दत्तचित्त रहने के कारण श्रमणतुल्य जीवन का परिपालन होता है।
__ आहार पौषध (आहार त्याग) करने से धर्म का उपचय होता है। शरीरसत्कार पौषध करने से धर्म का संचय होता है। ब्रह्मचर्य पौषध से शीलव्रत का पालन होता है और अव्यापार पौषध से सावध क्रियाओं का निरोध एवं सामायिकव्रत का प्रवर्तन होता है। 12. अतिथिसंविभाग व्रत
यह श्रावक का बारहवाँ व्रत है तथा शिक्षाव्रतों में भी अंतिम शिक्षाव्रत है। अतिथि का अर्थ है- जिसके आने की तिथि निश्चित न हो। जो अनायास आता है, वह अतिथि कहलाता है। साधु को अतिथि कहा गया है। जिस प्रकार अतिथि का समय निर्धारित नहीं होता, उसी प्रकार निर्ग्रन्थ-श्रमण का भी कोई पूर्व