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172... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... समस्त शरीर में फैल जाता है, फिर भी मान्त्रिक अपनी मन्त्रशक्ति द्वारा उसे क्रमशः उतारते हुए केवल अंगुली में स्थापित कर देता है, उसी प्रकार देशावगासिक व्रतधारी दिग्व्रत में स्वीकृत विस्तृत क्षेत्र को कालपरिमाण के आश्रय से प्रतिदिन संक्षिप्त करता जाता है। इससे प्रमादवृत्ति न्यून होती है अतएव इस व्रत का पालन प्रयत्नपूर्वक करना चाहिए। 11. पौषधोपवास व्रत
पौषधव्रत का सामान्य अर्थ है- पोषना, तृप्त करना अर्थात आत्म-भावों में रहने का अभ्यास करना पौषधव्रत है।
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र के अनुसार एक अहोरात्र के लिए चारों प्रकार के आहार का त्याग करना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, शरीर का सत्कार नहीं करना, सावद्य-व्यापार का त्याग करना पौषधोपवास-व्रत है। इसके व्युत्पत्तिपरक अर्थ के अनुसार अपने आपके निकट रहना पौषध है।
आचार्य हरिभद्रसूरिजी ने इसे परिभाषित करते हुए कहा है-विशेष नियमपूर्वक उपवास करना अर्थात आत्मचिन्तन के निमित्त सर्वसावध क्रिया का त्याग कर एवं शान्तिपूर्ण स्थान पर बैठकर उपवासपूर्वक नियत समय व्यतीत करना पौषधोपवास-व्रत है।
रत्नकरण्डक श्रावकाचार में चारों प्रकार के आहार-त्याग को उपवास तथा एक बार भोजन करने को पौषध कहा है।91 कार्तिकेयानुप्रेक्षा में पर्व के दिनों में स्नान, विलेपन, स्त्री-संसर्ग, गंध, धूप, आदि का परिहार करते हुए उपवास, एकासन या विकार रहित नीरस भोजन करने को पौषधोपवास कहा है।92 उपासकाध्ययन में पौषध का अर्थ 'पर्व' किया गया है। ये पर्व प्रत्येक मास में चार आते हैं। इन पर्व-दिनों में रसत्याग, एकासन, एकान्त-निवास आदि करना पौषधोपवास है।93 ___ योगशास्त्र के अनुसार पर्व के दिनों में उपवास आदि तप करना, पापमय क्रियाओं का त्याग करना, शरीर शोभा का त्याग करना पौषधोपवास है।94
श्वेताम्बर-मूर्तिपूजक की वर्तमान परम्परानुसार चार प्रहर अथवा आठ प्रहर तक पौषधशाला या उपाश्रय में उपवास पूर्वक रहना पौषधोपवास है।
यह व्रत स्वीकार करते हुए श्रावक प्रतिज्ञा करता है-'मैं आहार पौषध का देश से, शरीरसत्कार पौषध, ब्रह्मचर्य पौषध, अव्यापार पौषध का सुबह से दिन