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बारहव्रत आरोपण विधि का सैद्धान्तिक अनुचिन्तन ...165 परिभोग न करने से ममत्ववृत्ति का ह्रास एवं वैराग्यभाव का उत्कर्ष होता है। 8. अनर्थदण्डविरमण व्रत
अनर्थ + दण्ड इन दो पदों के योग से अनर्थदण्ड शब्द निष्पन्न है। अनर्थ का अर्थ है-निष्प्रयोजन, दण्ड का अर्थ है-हिंसाजन्य प्रवृत्ति यानी निष्प्रयोजन हिंसात्मक प्रवृत्ति करना अनर्थदण्ड है तथा अनावश्यक हिंसात्मक कार्यों से विरत होना अनर्थदण्ड विरमण व्रत है।
आचार्य हरिभद्रसूरि के अनुसार स्वयं के लिए या अपने पारिवारिक व्यक्तियों के जीवन निर्वाह के लिए अनिवार्य सावध प्रवृत्तियों के अतिरिक्त शेष समस्त पापपूर्ण प्रवृत्तियों से निवृत्त होना अनर्थदण्डविरमण व्रत है।6
इस व्रत की प्रतिज्ञा करने वाला साधक अनावश्यक हिंसाकारी कुछ प्रवृत्तियों का परित्याग करता है और अपरिहार्य स्थिति की अपेक्षा कुछ प्रवृत्तियों की मर्यादा निश्चित करता है।
दण्ड के प्रकार- जैन ग्रन्थों में दण्ड के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं
1. अर्थदण्ड और 2. अनर्थदण्ड। अर्थ का अभिप्राय प्रयोजन से है। गृहस्थ कृषिकर्म, गृहकर्म, व्यापारकर्म आदि जो आवश्यक प्रवृत्तियाँ करता है उन प्रवृत्तियों द्वारा होने वाली हिंसा को अर्थदण्ड कहते हैं तथा निष्प्रयोजन प्रवृत्तियाँ जैसे-सरकस देखना, सिनेमा देखना, ताश खेलना आदि द्वारा होने वाली हिंसा को अनर्थदण्ड कहते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो आवश्यक कार्य के निमित्त जो हिंसा होती है, वह अर्थदण्ड है और अनावश्यक कार्य, प्रमाद, कौतूहल, अविवेक आदि के निमित्त होने वाली हिंसा अनर्थदण्ड है। आवश्यकता से अधिक वस्तु का उपयोग एवं संग्रह करना भी अनर्थदण्ड है।
इस विवरण से अवगत होता है कि श्रावक को अनावश्यक आरम्भसमारम्भ के कार्य, कौतूहलप्रिय सरकस आदि के नाटक, मनोरंजन के निमित्त चलते हुए पत्तियों को तोड़ना, कुत्ते आदि पशुओं को छेड़ना, तालाब में पत्थर फेंकना आदि पापकारी प्रवृत्तियों का सेवन नहीं करना चाहिए।
अनर्थदण्ड के प्रकार- उपासकदशासूत्र में अनर्थदण्ड चार प्रकार का बताया गया है-77
1. अपध्यान- अपध्यान का अर्थ है दुश्चिंतन करना।