SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बारहव्रत आरोपण विधि का सैद्धान्तिक अनुचिन्तन ...155 अत्यधिक मूर्छा करता है।''51 इस प्रकार परिग्रह पाँचों पापों की जड़ है। योगशास्त्र में बताया है कि परिग्रह के कारण अनुदित राग-द्वेष भी उदय में आते हैं तथा जीवहिंसा जनित कार्य जन्म-मरण के मूल हैं और इनका कारण परिग्रह है।52 ___ परिग्रह दोषों का आगार है, विषमता का कारण है, पाप का जनक है, दुःखों का मूल है, असन्तोष की खान है। इस पर नियन्त्रण पाने के उद्देश्य से परिग्रह-परिमाणव्रत का विधान किया गया है। पाँच अणुव्रत के अन्य प्रकार आचार्य हरिभद्रसूरि ने पंच अणुव्रतों के इच्छायम, प्रवृत्तियम, स्थिरयम और सिद्धियम के रूप में चार-चार भेद किए हैं।53 इस प्रकार बीस भेद बताए गए हैं। ये चारों भेद अहिंसा आदि की तरतमता या स्तर भेद की दृष्टि से हैं तथा क्रमिक-अभिवर्द्धन के सूचक हैं। इन भेदों के आधार पर यम के बीस प्रकारों की तालिका इस प्रकार है अहिंसा 1. इच्छा-अहिंसा 2. प्रवृत्ति-अहिंसा 3. स्थिर-अहिंसा 4. सिद्धि-अहिंसा सत्य __ 1. इच्छा -सत्य 2. प्रवृत्ति-सत्य 3. स्थिर-सत्य 4. सिद्धि-सत्य अस्तेय __1. इच्छा-अस्तेय 2. प्रवृत्ति-अस्तेय 3. स्थिर-अस्तेय 4. सिद्धि-अस्तेय ब्रह्मचर्य 1. इच्छा-ब्रह्मचर्य 2. प्रवृत्ति-ब्रह्मचर्य 3. स्थिर-ब्रह्मचर्य 4. सिद्धि-ब्रह्मचर्य अपरिग्रह 1. इच्छा-अपरिग्रह 2. प्रवृत्ति-अपरिग्रह 3. स्थिर-अपरिग्रह 4. सिद्धि-अपरिग्रह
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy