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बारहव्रत आरोपण विधि का सैद्धान्तिक अनुचिन्तन ...145 3. भूम्यालीक- भूमि दो प्रकार की होती है 1. क्षेत्रभूमि-खुली भूमि, जैसेखेत, बाड़ी-बगीचा, तालाब, कुआ आदि। 2. वास्तुभूमि-ढंकी हुई भूमि, जैसेमहल, हवेली, दुकान, बंगला आदि। भूमि के सम्बन्ध में असत्य भाषण करना भम्यालीक है। जैसे-कम उपज वाली भूमि को अधिक उपज वाली कहना, कम मूल्य में बने हुए मकान को अधिक मूल्य वाला बताना आदि।
4. न्यासापहार- किसी की धरोहर को दबाने के लिए असत्य बोलना। जैसे- धरोहर रखने वाला जब मांगने आए, तब स्पष्ट इन्कार कर देना,अनजान बन जाना आदि।
5. कूटसाक्ष्य- किसी को लाभ एवं किसी को हानि पहुँचाने के विचार से जानबूझकर झूठी गवाही देना।
व्रतधारी श्रावक को असत्य भाषण के इन प्रकारों का सर्वथा त्याग करना चाहिए।
सत्यव्रत के अतिचार- सत्य अणुव्रत का पालन करने में पूर्ण सावधानी रखते हुए भी जिन दोषों के लगने की सम्भावना रहती है, वे मुख्य रूप से पाँच हैं___ 1. सहसाभ्याख्यान- बिना विचार किसी पर मिथ्या दोषारोपण करना।
2. रहस्याभ्याख्यान- किसी के द्वारा विश्वासपूर्वक कही गई गुप्त बात को प्रकट करना। ___ 3. स्वदारमन्त्रभेद- स्वस्त्री अथवा स्वपुरूष की गुप्त एवं विश्वासपूर्वक कही गई बात को प्रकट करना। ____4. मिथ्योपदेश- मिथ्या उपदेश देना, झूठी सलाह देना, मिथ्या वचन द्वारा किसी को कुमार्ग पर लगाना। . 5. कूटलेखक्रिया- किसी को हानि पहुँचाने के इरादे से झूठे दस्तावेज लिखना, झूठे लेख लिखना, झूठे हस्ताक्षर करना आदि।25
तत्त्वार्थसूत्र में इस व्रत सम्बन्धी अतिचार के नाम एवं क्रम निम्न हैं-1. मिथ्योपदेश 2. असत्य दोषारोपण 3. कूटलेख क्रिया 4. न्यासापहार और 5. मर्मभेद।26
सत्याणुव्रत की उपादेयता- सत्य की महिमा अपार है। सत्यवादी अपने जीवन में अनेक गुणों का संग्रह करता है। समस्त प्रकार के सद्गुण सत्यवान के