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________________ 144... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक कुष्ठादि महारोग, प्रियवियोग, शोक, अल्प आयु, दुःख, नरक तिर्यंच रूप दुर्गतियाँ प्राप्त होती हैं, अनंत संसार बढ़ता है अतः विवेकी पुरुष त्रसजीवों की हिंसा का ही सर्वथा त्याग न करें अपितु स्थावर जीवों की भी निरर्थक हिंसा न करें। 21 2. सत्य अणुव्रत इस व्रत का दूसरा नाम स्थूलमृषावाद विरमणव्रत है। 22 सत्यव्रत स्वीकार करते समय गृहस्थ यह प्रतिज्ञा करता है - " मैं स्थूल मृषावाद का यावत् जीवन के लिए मन, वचन और काया से त्याग करता हूँ। मैं न स्वयं असत्य भाषण करूंगा, न अन्य से कराऊँगा । मेरी यह प्रतिज्ञा दो करण तीन योगपूर्वक है। " स्थूलमृषावाद विरमण से तात्पर्य है - बड़े झूठ बोलने का त्याग करना, जैसे-झूठी साक्षी लगाना, झूठा लेख लिखना, झूठा आरोप देना आदि। सूक्ष्ममृषावाद का अर्थ है - अत्यन्त आवश्यक कार्यों के लिए बोले जाने वाला झूठ। जैसे- गृह सम्बन्धी कार्यों के लिए, बाल-बच्चों को समझाने के लिए, व्यापार आदि की आवश्यक प्रवृत्तियों के लिए बोला गया असत्य वचन । कई बार माताएँ सहज ही कह देती हैं- 'अरे उठ, एक प्रहर दिन चढ़ गया । ' वास्तव में तो दिन घडी भर भी नहीं चढ़ा होता है, इस प्रकार के कईं वचनों का प्रयोग सहज ही होता है, यह सूक्ष्म झूठ है। गृहस्थ के लिए सूक्ष्म झूठ बोलने की छूट है, क्योंकि सूक्ष्म झूठ के बिना गृहस्थ का जीवन व्यवहार चल नहीं सकता। साथ ही उस गृहस्थ पर पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय दायित्व का भार होता है, जिससे वह सूक्ष्म सत्य का पालन करने में असमर्थ होता है। इस व्रत में साधक ऐसे असत्य से बचने की प्रतिज्ञा करता है जिसे लोकव्यवहार में असत्य कहा जाता हो, जिससे दूसरे का अहित होता हो, जो सरकार द्वारा दण्डनीय हो और समाज द्वारा निन्दनीय हो । स्थूल असत्य के प्रकार - आवश्यकसूत्र 23, योगशास्त्र24 आदि ग्रन्थों में स्थूल असत्य बोलने के मुख्य पाँच प्रकार बताए गए हैं, जो निम्न हैं 1. कन्यालीक- वर-कन्या के सम्बन्ध में झूठी जानकारी देना, जैसे- बड़ी कन्या को छोटी कन्या कहना, अंगहीन कन्या को सर्वांग और सुन्दर कहना । 2. गवालीक- गौ आदि पशुओं के सम्बन्ध में झूठी जानकारी देना, जैसेदूध नहीं देने वाली गाय को दुधारू कहना, अधिक अवस्था वाले पशु को जवान आदि बताना ।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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