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________________ 146... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... प्रति आकर्षित होकर सहजतया चले आते हैं। सत्यवादी लोकप्रिय एवं विश्वसनीय बनता है। सत्यनिष्ठ व्यक्ति के समग्र कार्य अनायास और शीघ्र फलीभूत होते हैं। सत्य के प्रभाव से भंयकर रोग भी नष्ट हो जाते हैं। सत्य के प्रभाव से संग्राम में और संवाद में विजय की प्राप्ति होती है। सत्यवान् को मन्त्र, तन्त्र, यन्त्र, विद्या और औषध आदि तत्काल फलित होते हैं। सत्यवादी सदा निश्चिन्त रहता है। सत्यवादी की देवता भी रक्षा करते हैं। वह परलोक में भी इष्ट, मिष्ट, प्रिय, आदेय वचन वाला तथा मोक्ष का अधिकारी बनता है। सत्यवक्ता महासमुद्र में नहीं डूबता, पानी के भंवर में नहीं फंसता, अग्नि में नहीं जलता, पर्वत से गिरने पर भी नहीं मरता।27 उसकी चरणरज से पृथ्वी पावन बनती है।28 हानियाँ- असत्य वचन से जीव परवशता, अर्थभोगहानि, मित्ररहितता, देहविकृति, कुरूपता, अतिकर्कश स्पर्श, आभार रहितता, बधिरत्व, अंधत्व, मूकत्व, तोतलापन, लोकनिंदा, दासता, अशान्ति, अपमान, परिवार हानि आदि को प्राप्त करता है।29 न्यासापहार से विश्वासघात एवं कूटसाक्षी से पुण्य का नाश होता है।30 परभव में कन्दर्प आदि निम्न देवगति में जन्म मिलता है। जन्म-जन्मान्तर में मनुष्य बन भी जाए, तो भी उसका जीवन हास्यास्पद और निंदनीय बनता है।31 किसी के प्रति मिथ्या आरोप देने पर वह अश्रद्धा का पात्र बनता है, लोक में निन्दनीय बनता है। किसी की गुप्त बात को प्रकट करने से वह अविश्वास का भाजन बनता है। पति-पत्नी की गुप्त बात प्रकट करने पर परस्पर कलह होने की संभावनाएँ एवं एक दूसरे के प्रति अविश्वास की भावनाएँ पनपती हैं। मिथ्या उपदेश देने पर कर्मबन्ध का भागी बनता है झूठी साक्षी देने पर दूसरों को मार्मिक वेदना देता है उसके परिणाम स्वरूप वह स्वयं दुखी बनता है। साथ ही झूठ बोलने वाले को लोग गप्पी, गवार, लुच्चा, बदमाश, ठग, धूर्त आदि कुनामों से सम्बोधित करते हैं। परलोक में भी उसकी दुर्दशा होती है। कर्मसिद्धान्त के अनुसार असत्य भाषी मरकर मूक, तोतला, गूंगा, दुर्गन्धित मुखवाला और अनेक प्रकार के रोगों से ग्रस्त होता है।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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