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130... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक ....
29. सर्वार्थसिद्धि, 1/7 की टीका 30. स्थानांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 2/1/79 31. तत्त्वार्थसूत्र, 1/2 32. प्रवचनसारोद्धार 942 की टीका 33. विशेषावश्यकभाष्य, 2675 34. तत्त्वार्थसूत्र, 2/1 35. रत्नकरण्डकश्रावकाचार, टीका-पं.सदासुखलालजी कासलीवाल, पृ.-58 36. श्रावकप्रज्ञप्ति, 43-48 37. श्रावकधर्मविधिप्रकरण, 14 38. अनगारधर्मामृत, 2/62 39. रत्नकरण्डकश्रावकाचार, 21 40. निस्संकिय निक्कंखिय, निव्वितिगिच्छा अमूढदिट्ठी य । उववूह थिरीकरणे, वच्छल्ल पभावणे अट्ठ॥
उत्तराध्ययनसूत्र, 28/31 41. रत्नकरण्डकश्रावकाचार, 13 42. वही, 22 43. पुरूषार्थसिद्धयुपाय, 27 44. वही, 30 45. सिद्धांतसार, 1/69 46. उत्तराध्ययनसूत्र, 28/31 47. निशीथभाष्य, 1/23 48. श्रावकधर्मविधिप्रकरण, 46 49. दर्शनपाहुड (अष्टपाहुड), 8 50. पुरूषार्थसिद्धयुपाय, 23-30 51. चउसद्दहण तिलिंगं, दसविणय तिसुद्धि पंचगयदोसं ।
अट्ठपभावण भूसण, लक्खण पंचविह संजुत्तं ।। छविहजयणाऽगार, छब्भावण भावियं च छट्ठाणं । इय सत्तयसट्ठिलक्खणं, मेयविसुद्धं च सम्मत्तं ।
प्रवचनसारोद्धार, गा.-926-927