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________________ सम्यक्त्वव्रतारोपण विधि का मौलिक अध्ययन ...129 9. आचारांगसूत्र, 3/8/29 10. तत्त्वार्थसूत्र, 1/1 11. तत्त्वार्थभाष्य, पृ.-16 12. अभिधानराजेन्द्रकोश, भा.-5, पृ.-2425 13. तत्र सम्यगिति प्रशंसाओं निपात: समंचेतर्वा भावः। तत्त्वार्थाधिगमसभाष्य, सूत्र-1 की टीका 14. सम्यगित्युत्पन्न: शब्दो व्युत्पन्नो वा। अंचते: क्वौ समंचतीति सम्यगिति। अस्यार्थ: प्रशंसा। सर्वार्थसिद्धि, 1/1 की टीका 15. राजवार्तिक, 1/2 की टीका 16. प्रशस्तं दर्शनं सम्यग्दर्शनम्। संगतं वा दर्शनं सम्यग्दर्शनम् । तत्त्वार्थाधिगमसभाष्य, 1/1 की टीका 17. सर्वार्थसिद्धि, 1/1 की टीका 18. जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक विवेचन पृ.- 49-51 19. समयसार, कलश, 6मूल 20. तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्। तत्त्वार्थसूत्र, 1/2 21. जैन दर्शन में सम्यग्दर्शन समालोचनात्मक अध्ययन, अनुसन्धाता विनोदकुमार जैन, शोधप्रबन्ध, पृ.-33 22. भिगहिअमणभिगहिआ-भिनिवेसिय-संसइयमणाभोग। पणमिच्छ बार अविरइ, मणकरणानिअमु छजिअवहो।। कर्मग्रन्थ, देवेन्द्रसूरि, भा. 4/51 23. स्थानांगसूत्र, मधुकरमुनि, 2/1/80 24. प्रवचनसारोद्धार, गा.-942 25. अनगारधर्मामृत, 2/51 26. विशेषावश्यकभाष्य, 2675 27. सम्मत्तपरिग्गहियं, सम्मसुयं तं च पंचहा सम्म। उवसमियं सासाणं, खयसमजं वेययं खइय।। विशेषावश्यकभाष्य, 528 28. (क) उत्तराध्ययनसूत्र, 28/16-26 (ख) स्थानांगसूत्र, 10/104 (ग) प्रज्ञापनासूत्र, 1/104
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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