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________________ 120... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... व्रत ग्रहण हेतु नन्दीरचना आवश्यक क्यों? - नन्दीरचना (विधिपूर्वक तीर्थंकर परमात्मा की प्रतिमा को विराजमान करना) के माध्यम से तीर्थंकर परमात्मा की साक्षात् उपस्थिति का अनुभव किया जाता है। अरिहन्त परमात्मा सर्वज्ञ-सर्वदर्शी हैं, सब कुछ जानते-देखते हैं। इस प्रकार उनकी ज्ञानरूप उपस्थिति को लक्ष्य में रखने से व्यक्ति व्रत सम्बन्धी स्खलनाओं से सजग बना रहता है और व्रत का नैतिकता पूर्वक आचरण करता है। ___अर्द्धावनत मुद्रा में व्रत ग्रहण क्यों? - यह मुद्रा विनय गुण की द्योतक है। विनय से लघुता गुण प्रकट होता है और लघुता से प्रभुता का जन्म होता है। एक प्रसिद्ध दोहा है लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूर । जो लघुता धारण करें, प्रभुता आप ही हजूर ।। हमारी समस्त आराधनाओं का मुख्य ध्येय प्रभुता को समुपलब्ध करना है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि विनम्र व्यक्ति सर्वप्रकार के गुणों को अर्जित कर सकता है। वह मैत्री, करूणा, दया, प्रेम, परोपकार, अहिंसा, आदि अनेक गुणों को विकसित करता हुआ एक दिन शाश्वत् सुख का अधिकारी भी बन जाता है। एक तथ्य यह भी है कि झुके हुए या गहरे पात्र में डाली गई वस्तु अधिक समय तक टिकती है, उसके बाहर बिखरने की संभावनाएँ नहींवत् रहती हैं, उसी प्रकार विनम्र भाव से ग्रहण किया गया व्रत या नियम दीर्घ अवधिपर्यन्त अक्षुण्ण रहता है। जिनबिम्ब पर वासदान किसलिए?- सम्यक्त्वव्रत, बारहव्रत, उपधान-प्रवेश आदि के दिन व्रत-स्वीकार की विधि करवाते समय गुरू भगवन्त चौमुखी-प्रतिमा के चरणों पर अभिमन्त्रित वासचूर्ण का निक्षेपण करते हैं। यह प्रक्रिया व्रतग्राही एवं पदग्राही की आत्मरक्षा और शरीररक्षा के लिए की जाती है। वासाभिमन्त्रण क्यों? - वासचूर्ण या अक्षत को अभिमन्त्रित करने का उद्देश्य यह है कि मुद्रा और मन्त्र के प्रयोग से उसमें एक प्रभावी एवं अद्भुत परिवर्तन करने की शक्ति उत्पन्न हो जाती है, क्योंकि वास या अक्षत को अभिमन्त्रित करते समय जिन मुद्राओं का प्रयोग किया जाता है, वे मुद्राएँ व्रतग्राही के निर्मल भावों का संपोषण करती हैं तथा जिस मन्त्र विशेष के
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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