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________________ सम्यक्त्वव्रतारोपण विधि का मौलिक अध्ययन ... 119 स्पष्ट हो सकती है। शरीर शास्त्रियों का यह मानना है कि व्यक्ति का बायाँ भाग अधिक ग्रहणशील और सक्रिय होता है। चूंकि हृदय बाँयीं ओर होता है अतः उस दिशा की ओर उपस्थित हुआ साधक गुरूजनों के भावों को तीव्रता से ग्रहण कर सकता है इसलिए व्रतग्राही को बायीं ओर बिठाते हैं। व्रत आदि अनुष्ठानों में देववन्दन क्रिया क्यों करें? - व्रत ग्रहण के दौरान देववन्दन का विधान तीर्थंकर परमात्मा के प्रति निष्ठा को अभिव्यक्त करने एवं उनके उपकारों का स्मरण करने के प्रयोजन से किया जाता है। व्रत ग्रहण करते समय देवी-देवताओं की आराधना क्यों? - जैन धर्म की कुछ शाखाओं में व्रतादि ग्रहण के अवसर पर सम्यक्त्वी देवीदेवताओं का स्मरण करते हैं तथा स्तुति गान पूर्वक उनकी आराधना करते हैं। इस प्रक्रिया के पीछे यह हेतु संभव है कि वे समकितधारी होने के साथसाथ मति आदि तीन ज्ञान के धारक होने से व्रत पालन में सहायक होते हैं। परम्परागत मान्यता यह है कि सम्यक्त्वी देवी-देवताओं का स्मरण करने से वे आसुरी शक्तियों द्वारा होने वाले उपद्रवों को दूर करते हैं, बाहरी विघ्नों का निवारण करते हैं और प्रसन्न होकर व्रतधारियों के व्रत पालन में सहयोगी बनते हैं। देवी-देवताओं की आराधना करने का तीसरा उद्देश्य यह माना जा सकता है कि सभी प्रकार के देवी-देवताओं का स्वभावानुसार पृथक्-पृथक् कार्य है जैसे- श्रुतदेवता सद्बुद्धि का प्रेरक है, क्षेत्रदेवता रहने योग्य क्षेत्र का ध्यान रखते हैं, भुवनदेवता अपने कुल की रक्षा करते हैं। इस तरह समग्र देवी-देवताओं के अपने-अपने दायित्वपूर्ण कार्य हैं, अतः आराधना करने से रक्षापालक देवी-देवता प्रसन्न होकर आराधना को निर्विघ्न सम्पन्न करने में सहयोगी बनते हैं। व्रत ग्रहण काल में दो बार कायोत्सर्ग क्यों ? - सम्यक्त्वव्रत स्वीकार करने से पूर्व एक लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग तन-मन एवं चित्त की भूमिका को विशेष रूप से निर्दोष और निश्छल बनाने के प्रयोजन से किया जाता है तथा व्रत ग्रहण की समाप्ति पर किया जाने वाला कायोत्सर्ग-व्रत विशेष में स्थिर रहने के निमित्त किया जाता है। इसके अन्य प्रयोजन भी हो सकते हैं।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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