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सम्यक्त्वव्रतारोपण विधि का मौलिक अध्ययन ... 117
तब व्रतग्रहण तो उसकी अपेक्षा अत्यन्त श्रेष्ठ है।
यह अनुष्ठान व्रत संकल्प को स्थायित्व प्रदान करने एवं व्रतपालन के प्रति हर पल सजगता को टिकाए रखने के प्रयोजन को लेकर भी किया जाता है, क्योंकि जिनप्रतिमा की सेवा-पूजा करने से वैचारिक प्रदूषण दूर होता है और विचार निर्मल बनते हैं, जो धर्मसाधना की सफलता का मुख्य आधार है।
अक्षतभरी अंजलि द्वारा प्रदक्षिणा क्यों? - सम्यक्त्वव्रत ग्रहण करने के पूर्व अक्षत (चावल) से भरी हुई अंजलीसहित प्रदक्षिणा देने का प्रयोजन यह है कि वह व्रतग्राही प्रभु- प्रतिमा के सम्मुख यह चिन्तन एवं प्रार्थना करें कि हे भगवन् ! जिस प्रकार मेरी अंजली में अक्षत डाले गए हैं, उसी प्रकार मेरी सम्यक्त्वव्रत - पालन की मनोभावना भी अखण्ड रहे ।
यहाँ प्रश्न हो सकता है कि जो वीतरागी हैं, सर्वज्ञ हैं, न किसी को कुछ देते हैं और न किसी से कुछ लेते हैं, न बोलते हैं और न सुनते हैं, उस जिनबिम्ब के समक्ष अन्तर्भावना को अभिव्यक्त करने का क्या प्रयोजन ? यह मनोवैज्ञानिक सिद्धांत है कि व्यक्ति की भावनाएँ इच्छित स्थल तक अवश्य पहुँचती हैं और वहाँ तक भावनाओं का पहुँचना ही मन - परिवर्तन का एक आधार है। दूसरा यह है कि हमें अपनी भावनाएँ उनके समक्ष ही प्रस्तुत करनी चाहिए, जिनमें वे गुण रहे हुए हों। चूंकि जिनबिम्ब में प्राण प्रतिष्ठा द्वारा सजीवत्व की कल्पना करके प्राणों का आरोपण किया जाता है, उस दृष्टि से जिनबिम्ब में अरिहंत के सभी गुण समाए होते हैं। यह बात अनुमानप्रमाण या शब्द- प्रमाण से ही सिद्ध की जा सकती है, अतः जिनबिम्ब के समक्ष प्रार्थना करना सर्वथोचित है।
समवसरण की प्रदक्षिणा क्यों? - समवसरण की तीन प्रदक्षिणा देने का उद्देश्य यह है कि सम्यक्त्वव्रतधारी जन्म- जरा - मरण से मुक्त बनें और सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्ररूप धर्म की सम्प्राप्ति करें। नमस्कारमन्त्र का स्मरण करते हुए प्रदक्षिणा देने का हार्द यह है कि महान् पुरूषों के प्रति अपने-आपको समर्पित करते हुए एवं उनके गुणों का स्मरण करते हुए उत्तम कार्य के लिए आगे बढ़ें। यह अनुभूतिजन्य है कि पूज्यों के प्रति रहा हुआ समर्पण भाव एवं उनके गुणों का किया गया स्मरण व्यक्ति