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116... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक ....
वन्दना, अभिग्रह आदि सामान्य अनुष्ठानपूर्वक सम्यक्त्वव्रत का प्रतिज्ञा पाठ उच्चारित करवाया जाता है।
दिगम्बर परम्परा में इस व्रत सम्बन्धी किसी तरह की जानकारी अनुसंधान के उपरान्त भी प्राप्त नहीं हो पाई है। यद्यपि दिगम्बर-परम्परा के ग्रन्थों में सम्यक्त्व ग्रहण करने सम्बन्धी उल्लेख हैं। सम्यक्त्वव्रतारोपण सम्बन्धी विधि-विधानों के प्रयोजन
सम्यक्त्वव्रत ग्रहण करते एवं करवाते समय कुछ अनुष्ठान किए जाते हैं। जैसे-जिनबिंब की पूजा करना, ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करना, अक्षत भरी अंजलीपूर्वक प्रदक्षिणा देना, प्रदक्षिणा में नमस्कारमन्त्र का स्मरण करना, सम्यक्त्व-सामायिक के साथ श्रुतसामायिक का ग्रहण करना, वासचूर्ण अभिमन्त्रित करना, व्रतग्राही के मस्तक पर वासचूर्ण का क्षेपण करना, देववन्दन करना, व्रतग्राही को बायीं ओर बिठाना, शांतिनाथ आदि देवीदेवताओं की कायोत्सर्गपूर्वक आराधना करना, व्रतग्रहण के पूर्व और पश्चात् लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करना, अवनतमुद्रा में व्रतदंडक धारण करना, सात बार थोभवंदन करना, तप का प्रत्याख्यान करना आदि। इन क्रियाओं को किन उद्देश्यों से करते हैं? इस पर सामान्य प्रकाश डालना अपेक्षित है।
व्रत ग्रहण के दिन जिनबिम्ब की पूजा क्यों?- किसी भी व्रत को स्वीकार करने से पूर्व व्रतग्राहियों के लिए जिनबिम्ब की यथाशक्ति पूजाभक्ति करना एक आवश्यक अंग माना गया है। क्योंकि जिनेश्वर परमात्मा की पूजा करने से तन-मन और चित्त तीनों ही स्वस्थ रहते हैं, बिम्ब के विशुद्ध परमाणुओं का स्पर्श होने से भावनाओं पर विशेष प्रभाव पड़ता है, फलस्वरूप हृदय का भावोल्लास बढ़ जाता है और वह भावोल्लास व्रतग्राही के लिए अनन्त अशुभकर्मों की निर्जरा का हेतु बनता है। इससे व्रतपालन में मन का स्थैर्य बना रहता है।
दूसरा कारण यह है कि व्यक्ति जिस व्रत की प्रतिज्ञा हेतु उद्यत हुआ है, उसकी निर्विघ्न साधना के लिए उपकारियों का स्मरण, पूजन एवं वंदन करना नैतिक-कर्तव्य भी बनता है। यह बात व्यवहार-जगत् में भी देखी जाती है। चाहे साधारण व्यक्ति ही क्यों न हो, वह भी माता-पिता, गुरू आदि पूज्यजनों का आशीर्वाद लेकर श्रेष्ठ कार्य करने की इच्छा रखता है,