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जैन गृहस्थ के प्रकार एवं उसकी धर्माराधना विधि ...47 5. करण-2, योग-2, प्रतीक अंक-22, भंग-9
1. करूं नहीं, कराऊं नहीं-मन से, वचन से 2.करूं नही, कराऊं नहीं-मन से, काया से 3. करूं नहीं, कराऊं नहीं-वचन से, काया से 4. करूं नही, अनुमोदूं नहीं-मन से, वचन से 5. करूं नही, अनुमोदूं नहीं-मन से, काया से 6. करूं नही, अनुमोदूं नहीं-वचन से, काया से 7. कराऊं नहीं, अनुमोदूं नहींमन से, वचन से 8. कराऊं नहीं, अनुमोदूं नहीं-मन से, काया से 9. कराऊं नहीं, अनुमोदूं नहीं-वचन से, काया से। 6. करण-2 योग-3, प्रतीक अंक-23, भंग-3
1. करूं नहीं, कराऊं नहीं-मन से, वचन से, काया से 2.करूं नहीं, अनुमोदूं नहीं-मन से, वचन से, काया से 3. कराऊं नहीं, अनुमोदूं नहीं-मन से, वचन से, काया से। 7. करण-3 योग-1, प्रतीक अंक-31, भंग-3
1. करूं नहीं, कराऊं नहीं, अनुमोदूं नहीं-मन से 2. करूं नहीं, कराऊं नही, अनुमोदूं नहीं-वचन से 3. करूं नही, कराऊं नही, अनुमोदुं नहीं काया से। 8. करण-3, योग-2, प्रतीक अंक-32, भंग-3
1. करूं नहीं, कराऊं नहीं, अनुमोदूं नहीं-मन से, वचन से 2.करूं नही, कराऊं नही, अनुमोदूं नहीं-मन से, काया से 3. करूं नही, कराऊं नही, अनुमोदूं नहीं-वचन से, काया से। 9. करण-3, योग-3, प्रतीक अंक-33, भंग-1 _____ 1. करूं नहीं, कराऊं नहीं, अनुमोदूं नहीं-मन से, वचन से, काया से।
___ इन 49 भंगों को अतीत, अनागत और वर्तमान-इन तीन से गुणा करने पर 147 भंग होते हैं। इससे अतीत का प्रतिक्रमण, वर्तमान का संवरण और भविष्य के लिए प्रत्याख्यान होता है। आजकल प्राय: दो करण-तीन योग से व्रतों का ग्रहण किया जाता है। दिगम्बर परम्परा की मान्यतानुसार प्रतिमाधारी श्रावक तीन करण और तीन योग से अणुव्रत आदि का पालन करते हैं, पर उनकी व्रतग्रहण-विधि को प्रत्येक श्रावक अपना नहीं सकता है। श्वेताम्बर आचार्यों की मान्यतानुसार सामान्यतया जिन गृहस्थों पर गृहस्थाश्रम की जिम्मेदारियाँ हैं, वे तीन करण और तीन योगपूर्वक व्रत-ग्रहण नहीं कर सकते हैं। जो लोग यह