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________________ 46... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... उनचास भंग (विकल्प) जैन साधु तीन करण (मन, वचन, काया) और तीन योग (कृत, कारित, अनुमोदित) से सर्वसावध योग(पापकारी प्रवृत्ति) का त्याग करता है। तीन को तीन से गुणन करने पर नौ भंग बनते हैं। इन नौ भंगों को अतीत, वर्तमान और अनागत-इन तीन कालों से गुणा करने पर सत्ताईस भंग (9x3=27) बनते हैं। ये भंग श्रमण की अपेक्षा से है। जैन श्रावक सावध व्यापार का त्याग आंशिक रूप से करता है अत: उसके आंशिक प्रत्याख्यान होते हैं। इस दृष्टि से तीन योग और तीन करण से उसके उनचास विकल्प बनते हैं। विशेषावश्यकभाष्य में वर्णित प्रत्याख्यान के उनपचास विकल्प निम्न हैं।41. करण-1, योग-1, प्रतीक अंक-11, भंग-9 1. करूं नहीं-मन से 2.करूं नहीं-वचन से 3. करूं नहीं-काया से 4. कराऊं नहीं-मन से 5. कराऊं नहीं-वचन से 6. कराऊं नहीं-काया से 7. अनुमोदूं नहीं-मन से 8. अनुमोदूं नहीं-वचन से 9. अनुमोदूं नहीं-काया से। 2. करण-1 योग-2, प्रतीक अंक-12, भंग-9 1. करूँ नहीं-मन से, वचन से 2.करूँ नहीं-मन से, काया से, 3. करूँ नहीं-वचन से, काया से 4. कराऊं नहीं-मन से, वचन से 5. कराऊं नहीं-मन से, काया से 6. कराऊं नहीं-वचन से, काया से 7. अनुमोदूं नहीं-मन से, वचन से 8. अनुमोदूं नहीं-मन से, काया से 9. अनुमोदूं नहीं-वचन से, काया से। 3. करण-1, योग-3, प्रतीक अंक-13, भंग-3 1. करूँ नहीं-मन से, वचन से, काया से 2.कराऊं नहीं-मन से, वचन से. काया से 3. अनुमोदूं नहीं-मन से, वचन से, काया से। 4. करण-2 योग-1, प्रतीक अंक-21, भंग-9 1. करूं नहीं, कराऊं नहीं-मन से 2.करूं नहीं-कराऊं नहीं-वचन से 3. करूं नहीं, कराऊं नहीं-काया से 4. करूं नहीं, अनुमोदूं नहीं-मन से 5. करूं नहीं, अनुमोदूं नहीं, वचन से 6. करूं नहीं, अनुमोदूं नहीं-काया से 7. कराऊं नहीं, अनुमोदं नहीं-मन से 8. कराऊं नहीं, अनुमोदूं नहीं-वचन से 9. कराऊं नहीं, अनुमोदूं नहीं-काया से।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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