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________________ 38...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन निवृत्त होंगे। इस बालक के गर्भ में आते ही हमारी धार्मिक आस्था दृढ़ हुई थी, अत: यह 'दृढ़प्रतिज्ञ' नाम से सम्बोधित किया जाए-यह सोचकर माता-पिता ने बारहवें दिन बालक का 'दृढ़प्रतिज्ञ'-यह गुणानुगत गुण निष्पन्न नाम रखा। जब माता-पिता यह जान लेंगे कि बालक आठ वर्ष से कुछ अधिक का हो गया है, तो उसे शुभ तिथि, शुभ करण, शुभ नक्षत्र एवं शुभ मुहूर्त में शिक्षण हेतु कालाचार्य के पास ले जाएंगे।" यहाँ ध्यातव्य है कि उक्त कथन गौतमस्वामी द्वारा प्रश्न किए जाने पर भगवान महावीर स्वामी ने कहा है। जैन आगम साहित्य के सन्दर्भ में राजप्रश्नीयसूत्र भी कुछ संस्कारों की चर्चा करता है। वे निम्न है 77- उसके माता-पिता अनुक्रम से 1. स्थितिपतिता 2. चन्द्र-सूर्य दर्शन 3. धर्म-जागरण 4. नामकरण 5. अन्नप्राशन 6. प्रतिवर्धापन(आशीर्वाद-समारोह) 7. चंक्रमण (पैरों चलना और शब्दोच्चारण करना) 8. कर्णवेधन 9. संवत्सर प्रतिलेखन और 10. चूलोपनयन(मुंडनोत्सव-झडूला उतारना) आदि तथा अन्य दूसरे भी बहुत से गर्भाधान, जन्म आदि सम्बन्धी उत्सव भव्य समारोह के साथ सम्पन्न करेंगे।" इस उद्धरण पाठ में लगभग बारह प्रकार के संस्कारों का नामोल्लेख हआ है। उत्तरकालीन आचारदिनकर आदि में इनमें से सात संस्कारों के नाम मिलते हैं तथा वर्तमान में इन संस्कारों के नाम प्रचलित भी हैं। श्वेताम्बर परम्परा में सर्वाधिक ख्याति प्राप्त कल्पसूत्र में भी भगवान महावीर के जन्म प्रसंग से सम्बन्धित कुछ संस्कारों का वर्णन हुआ है।78 कल्पसूत्र का संस्कार पाठ इस रूप में उपलब्ध होता है-"श्रमण भगवान महावीर स्वामी के माता-पिता ने भगवान के जन्मदिन से पहले दिन कुल स्थिति की। तीसरे दिन चन्द्रमा और सूर्य के दर्शन कराए। छठवें दिन धर्मजागरण किया। ग्यारहवें दिन अशुचिकर्म निवर्तन किया। बारहवें दिन आने पर विपल मात्रा में चारों प्रकार का आहार तैयार किया तथा अपने जाति बान्धवों, विशिष्ट मित्रों, नगरवासियों आदि को विधि पूर्वक भोजन करवाया। उसके बाद बालक का नाम श्री वर्धमान कुमार रखा।” प्रस्तुत पाठांश का अवलोकन करने पर इतना सुनिश्चित हो जाता है कि इसमें चार या पाँच संस्कारों के नामों का ही उल्लेख है। उपर्युक्त विवेचन के आधार पर यह भी निर्णीत होता है कि संस्कारों का अस्तित्व आगमयुग से है।
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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