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________________ 36...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन इन संस्कारों का प्रारम्भिक स्वरूप क्या था ? इनका क्रमिक विकास किस रूप में हुआ? आगम युग में इन संस्कारों का अस्तित्व किस रूप में उपलब्ध होता है ? ये संस्कार कितने प्राचीन हैं? इन पहलुओं पर विचार करते हैं, तो कुछ तथ्य हमारे सामने आते हैं। जहाँ तक इन संस्कारों की प्राचीनता का सवाल है, वहाँ ज्ञाताधर्मकथा, प्रश्नव्याकरण, औपपातिक, राजप्रश्नीय, कल्पसूत्र आदि में कुछेक संस्कारों का उल्लेख अवश्य मिलता है। इससे सुसिद्ध है कि इन संस्कारों की परम्परा आगमयुगीन एवं प्राचीन है। जहाँ तक संस्कारों की संख्या और उसके मौलिक स्वरूप का सम्बन्ध है, वहाँ सर्वप्रथम भगवतीसूत्र में दस के लगभग संस्कारों को सम्पादित करने - करवाने के उल्लेख मिलते हैं। इस ग्रन्थ में संस्कारों का वर्णन करते हुए यह कहा गया है कि “महाबल कुमार के माता-पिता ने अपनी कुल मर्यादा की परम्परा के अनुसार गर्भाधान से जन्मदिन तक के और फिर क्रमशः चन्द्र-सूर्य दर्शन, जागरण, नामकरण, घुटनों के बल चलना, पैरों से चलना, अन्नप्राशन ( अन्न- भोजन का प्रारम्भ करना), ग्रासवर्द्धन (कौर बढाना), संभाषण (बोलना सिखाना), कर्णवेधन (कान बिंधाना ), संवत्सर प्रतिलेखन ( वर्षगांठ मनाना), शिखा (चोटी) रखना और उपनयन संस्कार करना, इत्यादि कौतुक किए । '’68 "" यहाँ आगे निर्देश है कि ‘जब महाबल कुमार आठ वर्ष से कुछ अधिक वय का हो गया, तब शुभ तिथि, शुभ करण, शुभ नक्षत्र और शुभ मुहूर्त्त में कलाचार्य के यहाँ पढ़ने के लिए भेजा | 9' विवाह संस्कार का उल्लेख करते हुए वर्णित किया है कि किसी समय शुभ तिथि, करण, नक्षत्र और मुहूर्त में महाबल कुमार ने स्नान किया, न्यौछावर करने की क्रिया (बलिकर्म) की, फिर उसे समस्त अलंकारों से विभूषित किया गया, फिर सौभाग्यवती स्त्रियों के द्वारा अभ्यंगन, स्नान, गीत, वादित्र, मण्डन, आठ अंगों पर तिलक, लाल डोरे के रूप में कंकण बंधन और दही, अक्षत आदि से मंगल कार्य किए तथा उत्तम कौतुक एवं मंगलोपचार के रूप में शान्तिकर्म किए, फिर आठ राजकन्याओं के साथ पाणिग्रहण करवाया गया। 70” इस प्रकार भगवतीसूत्र में दस से अधिक संस्कारों का स्पष्टतः उल्लेख मिलता है। इसमें वर्तमान प्रचलित कई प्रकार के नेकाचार अर्थात रीति-रिवाज
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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