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________________ 28... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन की जीवन-यात्रा सुखद एवं आनन्द के मार्ग की ओर चल पड़ती है। इस तरह संस्कार प्रक्रिया में जीवन को रूपान्तरित करने की अद्भुत कला होती है, इसलिए भी संस्कारों को आरोपित करना चाहिए। जिस तरह विभिन्न प्रकार की मिट्टी को संस्कारित कर उससे लोहा, ताँबा, सोना आदि बहुमूल्य धातुएँ प्राप्त कर लेते हैं। आयुर्वेदिक रसायन बनाने वाली औषधियों को कई प्रकार के रसों में मिश्रित कर उन्हें गजपुट, अग्निपुट विधियों द्वारा संस्कारित कर उनसे मकरध्वज जैसी चमत्कारी एवं अन्यान्य औषधियों का निर्माण कर लेते हैं, उसी तरह सोलह संस्कार की प्रक्रिया मनुष्य के लिए अनगढ़ से सुगढ़ बनाने की महत्त्वपूर्ण पद्धति है। वस्तुतः संस्कार आरोपण की आवश्यकता के पीछे भारतीय संस्कृति का एक ही उद्घोष रहा है- ' श्रेष्ठ संस्कारवान मानव का निर्माण हो।' वैदिक धर्मानुयायी ऐसा मानते हैं कि जन्म-जन्मान्तरों की वासनाओं का लेप जीवात्मा पर रहता है। मनुष्य योनि में ही वह आत्म तत्व पकड़ में आता है अतएव मनुष्य के गर्भ में आते ही आत्मा पर छाई हुई मलिनता को हटा दिया जाए और उस पर नए संस्कार आरोपित कर दिए जांए, ताकि इसके बाद की यात्रा सम्यक् दिशा की ओर हो सके इस वजह से भी संस्कार का आरोपण किया जाता है। संस्कारों के नाम एवं संख्या क्रम विषयक पारम्परिक मतभेद जैन धर्म एवं हिन्दू धर्म की प्रचलित परम्पराओं में सामान्यतया सोलह संस्कार माने गए हैं। उनमें जैन धर्म की विभिन्न धाराओं में संस्कार की संख्या को लेकर कोई मतभेद नहीं है, केवल संस्कार के नामों को लेकर किंचित भिन्नताएँ हैं, जबकि हिन्दू परम्परा में संस्कार के नामों एवं संख्या दोनों को लेकर मत-मतान्तर हैं। प्राचीन गृह्यसूत्रों में संस्कारों की भिन्न-भिन्न संख्याएँ दी गई हैं तथा उन संख्या के नामों में भी थोड़ा-बहुत अन्तर है । गृह्यसूत्रों में वर्णित संस्कारों की संख्या एवं नाम की सूची इस प्रकार है - आश्वलायन गृह्यसूत्र—7 पारस्कर गृह्यसूत्र 18 बौधायन गृह्यसूत्र +9 1 विवाह 2 गर्भाधान 1 विवाह 2 गर्भाधान 1 विवाह 2 गर्भाधान
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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