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________________ 18...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन संस्कार विधानों की सफलता एवं संस्कार्य व्यक्ति को आशीर्वाद देने के लिए देवता का उद्बोधन किया जाता था। संस्कार की सिद्धि के लिए शुभ वस्तुओं का स्पर्श करना मंगलकारी माना जाता था, इसीलिए सीमन्तोनयन संस्कार के समय उदुम्बर वृक्ष की शाखा को गर्भवती स्त्री की ग्रीवा पर स्पर्श करवाया जाता था35 और यह माना जाता था कि उसके स्पर्श से सन्तति प्रजनन की क्षमता आ जाती है। नवजात शिशु का श्वास-प्रश्वास सुचारु रीति से चले इसलिए बालक का पिता उसके जातकर्म संस्कार के प्रसंग पर अपनी श्वास शिशु पर तीन बार छोड़ता था। पुत्र की प्राप्ति के लिए गर्भवती महिला को दधि मिश्रित द्विदल धान्यों के साथ जौ का एक बीज खाना आवश्यक माना जाता था।36 सन्तति प्रजनन के लिए पत्नी की नाक के दाहिने छेद में विशाल वटवृक्ष का रस छोड़ा जाता था।37 सीमन्तोनयन संस्कार के अवसर पर पत्नी को चावल के ढेर की ओर देखने के लिए कहा जाता था। इस प्रकार संस्कारों की सिद्धि के लिए कई प्रकार की परम्पराएँ प्रचलित थीं तथा प्रत्येक व्यक्ति अपने आवश्यक एवं लौकिक कार्यों की सफलता के लिए संस्कार कर्म करवाता भी था। भौतिक लाभ की कामना- भौतिक वस्तुओं की संप्राप्ति भी संस्कार कर्म अनुष्ठान का एक मुख्य कारण थी। प्राच्यकाल में उस अवसर पर विशेष आराधनाएँ और प्रार्थनाएँ की जाती थीं। हिन्दुओं का यह विश्वास था कि आराधना और प्रार्थना के माध्यम से देवता उनकी अभीप्सित इच्छाओं को जान लेते हैं और पशु, सन्तान, अन्न, स्वास्थ्य, सुन्दर शरीर आदि की पूर्ति करते हैं।38 संस्कार कर्म का यह प्रयोजन आज भी मौजूद है अत: संस्कार क्रिया का एक प्रयोजन भौतिक वस्तुओं को समुपलब्ध करना भी था। भावाभिव्यक्ति का प्रकटन- भारतीय परम्परा में संस्कार का आयोजन एक कारण जीवन यात्रा में घटित होने वाले हर्ष, आनन्द और द:ख आदि को अभिव्यक्त करना भी रहा है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन काल में अच्छी-बुरी, श्रेष्ठ-निम्न कई प्रकार की घटनाएँ घटित होती रहती हैं, अत: उन्हें अभिव्यक्ति का रूप देने के लिए संस्कार कर्म किए जाते थे। जैसे-पुत्र जन्म के अवसर पर खुशी होना स्वाभाविक है, तो उस असीम आनन्द को प्रकट करने हेतु संस्कार उत्सव करते थे। इसी प्रकार विवाह के अवसर पर होने वाली प्रसन्नता, शिशु
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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