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________________ संस्कारों का मूल्य और उनकी अर्थवत्ता...17 संस्कारों के अन्तर्गत अनेक साधनों का आलम्बन लिया गया था। जैसे- मुण्डन के अवसर पर काटे हुए केशों को गाय के गोबर के पिण्ड के साथ मिलाकर गोष्ठ में गाड़ दिया जाता था अथवा नदी में फेंक दिया जाता था, जिससे कोई भूत या पिशाच उस पर अपने चमत्कारी प्रयोग न कर सके।29 अन्तिम संस्कार के समय जैसे ही व्यक्ति मृत्यु के निकट होता था, उस समय मरणासन्न व्यक्ति की प्रतिकृति का दाह कर दिया जाता था। इसके मूल में यह उद्देश्य निहित था कि मृत्यु जब मरणासन्न व्यक्ति पर आक्रमण करे, तो तथाकथित मृत व्यक्ति के कारण भ्रमित हो जाए। इस प्रकार अशुभ प्रभावों को रोकने के लिए दुष्ट देवों को बहकाया जाता था।30 जातकर्म संस्कार के समय बालक का पिता देवों और देवियों से भी अशुभ प्रभावों का निवारण करने के लिए प्रार्थना करता था।31 स्त्री की गर्भावस्था के समय उसकी रक्षा के लिए प्रार्थनाएँ की जाती थीं।32 भूतपिशाचों और राक्षसों से रक्षा करने के लिए जल का उपयोग प्रत्येक संस्कार में किया जाता था। शतपथ ब्राह्यण में जल को राक्षसों का नाशक कहा गया है।33 अवांछित शक्तियों को आतंकित करने के लिए अन्त्येष्टि के समय शब्द किया जाता था। प्राचीनकाल में स्वार्थवश अपने पर से अमंगल शक्तियों को हटाकर उन्हें अन्य व्यक्तियों पर संक्रमित करने के प्रयोग और प्रयत्न भी किए जाते थे। जैसेवधू द्वारा धारण किए गए वैवाहिक वस्त्र ब्राह्मण को दान कर दिए जाते थे, क्योंकि वे वधू के लिए घातक समझे जाते थे। इस विषय में लोगों की यह धारणा थी कि ब्राह्मण इतना सशक्त होता है कि उस पर अशुभ शक्तियाँ आक्रमण नहीं कर सकती हैं या फिर वैवाहिक वस्त्रों को गौशाला में रख दिया जाता था अथवा वृक्ष पर टांग दिया जाता था।34 इस प्रकार संस्कार निष्पन्न करते समय उपद्रवों या अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए कई प्रकार के साधन अपनाए जाते थे। वांछित सिद्धि की प्राप्ति- पूर्व काल में संस्कार कर्म का प्रयोजन वांछित सिद्धि को प्राप्त करना भी था। जिस प्रकार संस्कारों द्वारा अशुभ प्रभावों से बचने का प्रयत्न किया जाता था, उसी प्रकार संस्कार के अवसर पर संस्कार्य व्यक्ति के हित के लिए वांछित प्रयोग भी किए जाते थे। हिन्दुओं का यह विश्वास था कि जीवन का प्रत्येक समय किसी न किसी देवता द्वारा अधिष्ठित है अत:
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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