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संस्कारों का मूल्य और उनकी अर्थवत्ता... 15
वैदिक धर्म में यह माना गया है कि यज्ञ उपचार के साथ-साथ इन मन्त्रों की शक्ति और भी बढ़ जाती है। जो लोग आहुतियाँ देते हैं, उन पर इन मन्त्रों का सीधा प्रभाव पड़ता है। जैन परम्परा में यज्ञ आहुति देने का कोई विधान नहीं है। फिर भी यहाँ मन्त्रोच्चारण से होने वाले प्रभाव को बहुत पहले से स्वीकारा गया है। जिस प्रकार बिजली, भाप, अणु, रसायन आदि का अपना विज्ञान है, उसी प्रकार मन्त्र शास्त्र एवं कर्मकाण्डों का भी अपना विज्ञान है। 27 यदि कोई उसका प्रयोग ठीक प्रकार से कर सके, तो मनुष्य पर उसका असाधारण प्रभाव पड़ता है और उसका असाधारण लाभ भी उठाया जा सकता है। व्यक्ति को सुसंस्कृत बनाने में संस्कार पद्धति के क्रियाकलाप सफलीभूत माने जाते हैं। संस्कारकर्म या संस्कार आरोप पद्धति को एक प्रकार से मनोविकारों के निराकरण की चिकित्सा प्रणाली कहा जा सकता है।
मानसिक चिकित्सा दृष्टि से संस्कारों का मूल्य
श्रीरामशर्मा आचार्य का मन्तव्य है कि जिस प्रकार अभ्रक आदि सामान्य पदार्थों का अनेक बार अग्नि संस्कार कर उससे मकरध्वज जैसी बहुमूल्य रसायनें बनाई जाती हैं, उसी प्रकार मनुष्य पर षोडश संस्कारों का सोलह बार प्रयोग करके उसे सुसंस्कारी बनाया जाता है।
शारीरिक रोगों को दूर करने हेतु अनेकशः अन्वेषण हो रहे हैं। आयुर्वेद, होम्योपैथी, एलोपैथी, नेचरोपैथी आदि चिकित्सा पद्धतियाँ शरीरगत कष्टों को दूर करने में समर्थ हैं। पागलों के इलाज के लिए मानसिक चिकित्सालय भी खुले हैं, किन्तु आज की सबसे बड़ी समस्या है - मनुष्य की मानसिक विकृतियों को कैसे दूर किया जाए ? मानव प्रगति के पथ को अवरूद्ध करने वाली प्रधान बाधा यह विकृतियाँ ही हैं, पर इनके निराकरण का कोई उपाय अब तक ढूंढा नहीं गया है। ये मानसिक विकृतियाँ व्यक्ति को अधपगले जैसी स्थिति में लाकर पटक देती हैं। इन विकृतियों का मूल कारण कुसंस्कार है। इनके निराकरण के सम्बन्ध में कोई चिकित्सा कामयाब नहीं हो पा रही है। अन्य मानसिक बीमारियाँ जैसे— अविश्वास, निर्दयता, रूखापन, ईर्ष्या, क्रोध, कामुकता, कंजूस वृत्ति आदि एक प्रकार के हलके मानसिक रोग हैं, किन्तु कुसंस्कार का होना सबसे बड़ा रोग है। कुसंस्कारी व्यक्ति से प्रायः सभी लोग खिन्न एवं असंतुष्ट रहते हैं। उस व्यक्ति की अपनी प्रतिभा तो नष्ट हो जाती है तथा वह कुछ श्रेष्ठ कार्य कर