SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 14...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन हिन्दू धर्म के संस्कारों के शोध में लगे एक वैज्ञानिक का कहना है कि इन संस्कारों की पृष्ठभूमि मनोवैज्ञानिक सूझबूझ पर बनी है, जिसमें व्यक्तित्व के समग्र विकास की पूरी-पूरी सम्भावना है। संस्कार मात्र कर्मकाण्ड नहीं, आत्म निर्माण के सशक्त माध्यम हैं। इन संस्कारों का व्यापक स्तर पर प्रचलन या प्रयोग किया जा सके, तो व्यक्ति एवं समाज के नव निर्माण की आवश्यक पूर्ति हो सकती है।26 निष्कर्ष रूप में यह तथ्य सामने आता है कि संस्कारों द्वारा जीवन के विविध आयामों को विकसित एवं पल्लवित किया जा सकता है। साथ ही पूर्वाभ्यास से आगत तमाम विकृतियों एवं दुष्चेष्टाओं को निरस्त भी किया जा सकता है। इन्हीं वैशिष्ट्यों के कारण वर्तमानयुगीन विषम परिस्थितियों में संस्कारों की प्रासंगिकता विशेष रूप से प्रतीत होती है। संस्कारों की पृष्ठभूमि में रहे वैज्ञानिक तथ्य संस्कार कर्म एक विज्ञान सम्मत प्रक्रिया है, जिनका आविर्भाव शास्त्र ग्रन्थों के आधार पर हुआ है। बालक के गर्भ में प्रवेश करने से लेकर जीवनयापन के विभिन्न पड़ावों से गुजरते हुए शरीर छोड़ने तक विविध ‘संस्कारों' का आयोजन किया जाता है। यह एक विशिष्ट विधानात्मक पद्धति है। इन विधानों से व्यक्ति की अन्तश्चेतना पर एक विशेष प्रभाव पड़ता है और उसका मन सुसंस्कारी होने लगता है। विशिष्ट प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त अद्वितीय शक्ति सम्पन्न मन्त्रों में क्षमता होती है। उन मन्त्रों का निर्माण ऐसी वैज्ञानिक पद्धति से हुआ है कि जब उन मन्त्रों का विधिवत उच्चारण किया जाता है, तब वे आकाश तत्व में एक विशेष विद्युत प्रवाह तरंगित करते हैं। उसका तद्योग्य संस्कारों पर वैसा ही प्रभाव पड़ता है, जैसा उन मन्त्रों का उद्देश्य होता है। मन्त्रों की शक्ति सुप्रसिद्ध है। अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिकों द्वारा यह शोध बहुत पहले किया जा चुका है कि किन शब्दों का किन-किन शब्दों के साथ तालमेल बिठाया जाए और उनका किस प्रकार उच्चारण किया जाए जिससे सुनने वालों पर अथवा जिनके निमित्त उनका उच्चारण किया जा रहा है, उन पर अच्छा प्रभाव पड़ सके। इसी निष्कर्ष के आधार पर वे मन्त्र बने हैं। उपलब्ध मन्त्रों का किस प्रयोजन के लिए, किस प्रकार प्रयोग किया जाए? इसका विवेचन धर्म ग्रन्थों में भी हुआ है।
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy