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10... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन
ध्यान नहीं रह गया है कि सुन्दरता का निवास मनुष्य के अन्दर है, बाजारों में बिकने वाले श्रृंगार साधनों में नहीं। यदि सुन्दरता का निवास प्रसाधनों या श्रृंगारों में होता, तो हर मनुष्य सुन्दर दिखता, जो इनका प्रयोग करता है और हर वह स्त्री-पुरुष कुरूप दिखते जो इनका उपयोग नहीं करते, परन्तु ऐसा नहीं है। ग्रामीण इलाकों के स्वच्छ वातावरण में पलने वाली नारियाँ कई बार प्रसाधन सामग्री का उपयोग करने वाली स्त्रियों से अनेक गुना सुन्दर दिखाई पड़ती हैं। वस्तुतः कृत्रिम प्रसाधनों से निखरने वाली सुन्दरता क्षणिक होती है, जबकि स्वाभाविक सुन्दरता टिकाऊ होती है, मनुष्य की बात तो रहने दें, पशु-पक्षी जगत को ही देख लें तो कई पशु-पक्षी इतने सुन्दर होते हैं कि उनकी छवि अवर्णनीय होती हैं, जबकि उनके पास न तो कोई प्रसाधन होता है और न श्रृंगार सामग्री ही। उन जीवों की सुन्दरता स्वाभाविक होती है। इसका अर्थ यही है कि सुन्दरता का आधार प्रसाधन या श्रृंगार नहीं है, अपितु स्वाभाविक प्रकृति है।
यह भी कहा जाता है कि सुन्दरता ईश्वर प्रदत्त वस्तु है, जिसे मिल जाती है, वह सुन्दर दिखता है। कुछ लोग गोरी चमड़ी और अच्छे नाक-नक्शे को सुन्दरता मान लेते हैं, जबकि सुन्दरता का सम्बन्ध केवल रंग और नाक-नक्शे से नहीं हैं। यदि सुन्दरता - असुन्दरता का आधार रंग या सही बनावट ही होता, तो हर काला व्यक्ति कुरूप दिखता, जबकि काले लोग भी कई बार अत्यंत सुन्दर दिखते हैं। भगवान राम और कृष्ण काले थे, किन्तु इसके बाबजूद भी वे इतने सुन्दर थे कि उनकी सुन्दरता का गुणगान आज तक किया जा रहा है । इससे सिद्ध होता है कि सुन्दरता का मूल आधार व्यक्ति का आन्तरिक सौंदर्य है।
यह भी देखा गया है कि कई लोग गौरवर्णीय तथा अच्छे नाक-नक्शे वाले होते हैं, फिर भी मन उनकी ओर आकर्षित नहीं होता, बहुत बार उनसे अरूचि और घृणा तक होने लगती है। इसका यही अर्थ है कि सुन्दरता का निवास सिर्फ वर्ण या बनावट में नहीं है । इतिहास साक्षी है कि अनेक सन्त, महात्मा ऐसे हुए हैं, जो कुरूप ' होने पर भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते थे। उनके पास से हटने की इच्छा तक नहीं होती थी । अष्टावक्र ऋषि आठ जगह से कूबड़े थे और अत्यन्त कुरूप थे। चाणक्य की कुरूपता जग प्रसिद्ध है। कार्लमार्क्स,