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संस्कारों का मूल्य और उनकी अर्थवत्ता...9 किन्तु जैन धर्म में दो-तीन को छोड़कर शेष संस्कारों की प्रक्रिया विधि विलुप्त सी हो गई है। उनमें भी दिगम्बर परम्परा में संस्कारों का अस्तित्व अपेक्षाकृत सही है, पर श्वेताम्बर परम्परा में तो संस्कारों का अस्तित्व समाप्त प्राय: है। यद्यपि व्रतारोपण संस्कार आज भी मौजूद है। यदि हमें सही व्यक्तित्व का निर्माण करते हुए आचार-विचार की भूमिका को पवित्र बनाए रखना है तो अपनी महान संस्कृति के मूलाधार संस्कारों की प्रक्रिया को पुन: सजीव करना होगा। इसी के साथ तद्योग्य विधि विधानों को मात्र परम्परा निर्वाह हेतु सम्पन्न न करके पूर्ण उत्साह, श्रद्धा एवं तत्परता के साथ सम्पादित करने की ओर ध्यान देना होगा। हमारा जितना अधिक ध्यान संस्कारों को सही तरीके से सम्पन्न करने की ओर होगा, उसके उतने ही बेहतर परिणाम उत्पन्न होंगे। __व्यक्ति, परिवार, समाज, संघ एवं राष्ट्र को नैतिक एवं सदाचारमय बनाने के लिए हमें वे उपाय करने होंगे, जिनसे प्रत्येक परिवार में संस्कारों का बीजारोपण हो सके। यह तभी संभव है, जब हम उनका महत्त्व समझें। परमार्थतः हमारे जीवन में भोजन, वस्त्र, शिक्षा, चिकित्सा आदि का जितना महत्त्व है, उससे कई गुना अधिक संस्कारों का मूल्य है। संस्कारहीन व्यक्ति के लिए पैसा, धन, समृद्धि, परिवार, मकान आदि भौतिक वस्तुएँ कोई महत्त्व नहीं रखतीं, यह अनुभूतिपरक सत्य है। अत: संस्कारों की दोनों प्रक्रियाओं को सुविधि पूर्वक एवं सुव्यवस्थित रूप से सम्पन्न करना चाहिए।24 सुसंस्कारों की उपयोगिता
संसार में सभी लोग सुन्दर दिखना चाहते हैं, कोई भी यह नहीं चाहता कि वह असुन्दर तथा कुरूप दिखाई दे। अपनी सुन्दरता को बनाए रखने एवं प्रकट करने के लिए लोग सौन्दर्य प्रसाधनों पर प्रतिवर्ष लाखों-करोड़ों रूपये खर्च कर रहे हैं। प्रसाधन सामग्री की बड़ी-बड़ी फैक्टरियाँ दिन-रात काम कर रही हैं। लोग सुन्दर दिखने के लिए तरह-तरह के वेश विन्यास और फैशनों को अपना रहे हैं, किन्तु प्रसाधनों का उपयोग करने के बावजूद भी वास्तविक सुंदरता प्रकट नहीं होती।
नित नए सौन्दर्य प्रसाधनों का बढ़ना इस बात का प्रमाण है कि संसार की प्राकृतिक, स्वाभाविक अथवा वास्तविक सुन्दरता का हास हो रहा है। इसका मूल कारण यह है कि लोग सुन्दरता के यथार्थ को भूलते जा रहे हैं। उन्हें यह