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________________ 8...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन सकता, अत: संस्कृति को जीवित रखने के लिए संस्कारों की अपरिहार्य रूप से आवश्यकता है। संस्कार, संस्कृति के आधारभूत केन्द्र, उद्गम स्थल या मूल स्रोत हैं। दार्शनिक भाषा में इनका सम्बन्ध अन्वय और व्यतिरेक का सम्बन्ध है। जिसके होने पर जो हो, वह अन्वय और जिसके न रहने पर जो न रहे, वह व्यतिरेक सम्बन्ध कहलाता है। संस्कारों के रहने पर संस्कृति रहेगी और संस्कारों के नहीं रहने पर संस्कृति भी नहीं रहेगी, यह सुनिश्चित सत्य है अत: संस्कार नींव के पत्थर हैं, जिनकी आधारशिला पर संस्कृति का विशाल भवन खड़ा किया जाता है। संस्कृति का अस्तित्व संस्कारों से अनुप्राणित है। संस्कारों के मुख्य प्रकार सामान्यत: संस्कारों की प्रक्रिया को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है। एक बाह्य स्वरूप, जो मन्त्रोच्चारण, यज्ञानुष्ठान आदि कर्मकाण्डों के रूप में प्रयुक्त होता है, दूसरा आभ्यंतर स्वरूप, जो सम्यक प्रशिक्षण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। जो लोग क्रियाकाण्डों के प्रति कम विश्वास रखते हैं, उनके लिए यह जानने जैसा तथ्य है कि जिस प्रकार तीव्र औषधियाँ शरीर पर तत्काल प्रभाव करती हैं, उसी प्रकार इन कर्मकाण्डों का भी सुनिश्चित प्रभाव होता है। यदि उचित समय और उचित वातावरण में ये संस्कार सम्यक विधि-विधान पूर्वक सम्पन्न किए जाएं तो नि:सन्देह उनका प्रभाव असाधारण ही होगा। जैसे कि किसी बालक का अन्नप्राशन संस्कार ठीक प्रकार से हुआ हो, वह उदर विकारों से मुक्त रहेगा, जिसका विद्यारम्भ संस्कार विधिवत किया गया हो, उसका विवेचन रूकेगा नहीं, जिसका उपनयन संस्कार सुविधि पूर्वक सम्पन्न हुआ हो, वह आजीवन मानव धर्म का अनुयायी बना रहेगा, जिन वर-वधू का विवाह संस्कार उचित रीति के साथ सम्पन्न किया गया हो, उनके जीवन में पारस्परिक प्रेम एवं सद्भाव की गंगा अविच्छिन्न रूप से बहती रहेगी। इसी प्रकार अन्य संस्कारों के सम्बन्ध में भी ऐसे ही परिणामों की संभावना मानी जाती है। हर संस्कार का अपना महत्त्व, प्रभाव और परिणाम होता है। संस्कार सम्बन्धी जो भी क्रियाकलाप प्रचलित रहे हैं, उन्हें वर्तमान में अधूरे, लंगड़े और टालने जैसे वातावरण में सम्पन्न किया जा रहा है, फलस्वरूप उनका प्रभाव भी नगण्य ही होता है। हिन्दू परम्परा में आज भी संस्कारों का प्रचलन यथावत् है,
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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