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________________ संस्कारों का मूल्य और उनकी अर्थवत्ता ... 7 जाते, तब तक मानव वृत्तियों में परिवर्तन नहीं लाया जा सकता, इसलिए विचारों का सम्यक परिवर्तन ही संस्कार है। यहाँ यह समझ लेना भी जरूरी है कि जहाँ विचार परिवर्तित होकर संस्कार बनते हैं, वहीं सच्चारित्र का निर्माण होता है तथा चारित्र वह धुरी है, जिस पर मनुष्य का जीवन सुख-शान्ति और मान-सम्मान की दिशा में गतिमान होता है । इस तरह मानव जीवन को पवित्र एवं उत्कृष्ट बनाने वाली आध्यात्मिक क्रिया का नाम 'संस्कार' है। संस्कार और संस्कृति का तात्त्विक सम्बन्ध सम्+कृ+घञ् के संयोग से संस्कार शब्द निर्मित होता है और सम् +कृ+क्त से संस्कृत शब्द का निर्माण होता है। संस्कार और संस्कृत में प्रत्यय मात्र का अन्तर है। ‘क्त' प्रत्यय लगने से संस्कृत एवं 'घञ्' प्रत्यय लगने से संस्कार शब्द बनता है। यद्यपि संस्कृति और संस्कार पर्यायवाचक शब्द हैं। ये दोनों ही परिष्कृत, अभिमन्त्रित, पवित्रीकृत आदि अर्थों के घोतक हैं, फिर भी दोनों भिन्नार्थक हैं। वेदाचार्य शशिनाथ झा के अनुसार अभ्युदयमूलक उत्तम कर्म संस्कृति है और सत्-असत्कर्ममूलक उत्पन्न मनोवृत्ति या आत्मवृत्ति संस्कार है जैसे- संस्कारक द्रव्य द्वारा हीरा, मणि आदि रत्नों में चमक या शोभा पैदा की जाती है, उसी तरह सत्-संस्कार द्वारा अन्तरात्मा में शोभा या अन्तस्तेज अभिव्यक्त किया जाता है122 दर्शन शास्त्र के अनुसार संस्कार रूपी बीज के अनुरूप कर्म रूपी वृक्ष उत्पन्न होते हैं और तदनुरूप फल भी देते हैं। वे फल आनन्दमय और दुःखमय दोनों प्रकार के होते हैं। हमारे पूर्व जन्मों के संस्कार जैसे होते हैं, उसी तरह के हमारे कर्म बनते हैं। सत् संस्कार का फल है सत्कर्म और असत् संस्कार का फल है असत्कर्म। इस तरह संस्कृति और संस्कार भिन्न-भिन्न अर्थ के बोधक हैं। डॉ. जितेन्द्रकुमार के मतानुसार व्यक्ति में जो कार्य संस्कार का है, समाज में वही कार्य संस्कृति का है। 23 संस्कार व्यष्टि को सुधारते हैं, तो संस्कृति समष्टि को सुधारती है । पशु से मानव बनाने का कार्य संस्कार करते हैं और समूह से समाज में परिवर्तित करने का कार्य संस्कृति करती है। संस्कृति समष्टि में परिष्कार करती है तथा संस्कार व्यष्टि में। बिना व्यष्टि के समष्टि संभव नहीं, इसलिए संस्कारों के अभाव में संस्कृति का स्थान और आधार भी कुछ नहीं हो
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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