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________________ 4...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन संस्कार है। • वीरमित्रोदय संस्कार प्रकाश के अनुसार संस्कार का अर्थ हैपरिशुद्धि या सफाई। अथवा “आत्म शरीरान्यतरनिष्ठो विहितक्रिया जन्योघतिशयविशेष: संस्कारः।" अर्थात पाँच कर्मेन्द्रियों और पाँच ज्ञानेन्द्रियों सहित शरीरतत्त्व और मनस्तत्त्व के साथ जीवात्मतत्त्व की परिशुद्धि जिस क्रियाकलाप से सम्पन्न हो, उसे संस्कार कहते हैं।15 . वीरमित्रोदय में संस्कार को विश्लेषित करते हुए कहा है16- यह एक विलक्षण योग्यता है, जो शास्त्र विहित क्रियाओं के करने से उत्पन्न होती है। वह योग्यता दो प्रकार की है- 1. जिसके द्वारा व्यक्ति अन्य क्रियाओं के योग्य हो जाता है जैसे- उपनयन संस्कार से वेदारम्भ होता है तथा 2. दोष से मुक्त हो जाता है जैसे- जातकर्म संस्कार से वीर्य एवं गर्भाशय का दोष मोचन होता है। • आचार्य चरक कहते हैं17-“संस्कारो हि गुणान्तराधानमुच्यते” अर्थात वस्तु के दुर्गुणों का परिहार तथा गुणों का परिवर्तन करके भिन्न एवं नए गुणों का आधान करने का नाम संस्कार है। इसके अतिरिक्त निर्गुणी को गुण युक्त बनाना, विकारों एवं अशुद्धियों का निवारण करना तथा मूल्यवान गुणों को सम्प्रेषित अथवा संक्रमित करना संस्कारों का कार्य है। इसका दूसरा पर्याय नाम 'करण' है। . चरकसंहिता में उल्लेख है-“करणं हि नाम स्वाभाविकानाम् द्रव्याणामभि संस्कारः' अर्थात स्वाभाविक द्रव्यों का अभिसंस्कार करना करण है जैसे-धान या चावल को सुसंस्कारित करके सुपाच्य खील या परमल बनाना अथवा दूध से दही और दही से घी का निर्माण करना अभिसंस्कार है। इस तरह वस्तु के गुणों में आमूलचूल परिवर्तन कर देना अभिसंस्कार या करण कहलाता है। वस्तुत: संस्कार ही वह प्रक्रिया है, जो वस्तु के अन्दर नए गुण उत्पन्न कर सकती है। • महर्षि शबर के मतानुसार “संस्कारो नाम स भवति यस्मिन्जाते पदार्थो भवति योग्य: कस्यचिदर्थस्य' अर्थात संस्कार वह है, जिसके होने से कोई पदार्थ या व्यक्ति किसी कार्य के योग्य हो जाता है अथवा संस्कार द्वारा मनुष्य किसी उद्देश्य विशेष के उपयुक्त बनता है। मानव जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति है अत: मोक्ष उपलब्धि के योग्य जीवन का निर्माण करना संस्कार है।18
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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