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________________ 326...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन आजकल लोग लम्बे-चौड़े मृतक भोज करते हैं। यह अवांछनीय प्रथा है, जो सर्वथा अबुद्धिमत्तापूर्ण है। विवाह-शादियों में होने वाले प्रीतिभोजों की तरह लम्बे-चौड़े मृतक भोज करना कहाँ तक उचित है? उस प्रसंग की कल्पना कर ऐसा प्रतीत होता है, मानों किसी का मर जाना लोगों के लिए खुशी का कारण बना है, जिसके लिए दावत उड़ाई जा रही है। जिन लोगों को दावतें खिलाई जाती हैं, वे समाज-सेवक हों यह जरूरी नहीं है। यह भोज तभी पुण्यफलदायक हो सकता है जब यह खर्च लोक मंगल के लिए, ब्रह्मपरायण व्यक्तियों के लिए किया जाए। साधारण लोगों एवं सम्बन्धीजनों को खिलाना एक प्रकार का पारस्परिक व्यवहार है। इससे मृतात्मा को क्या लाभ मिल सकता है? इसी प्रकार मृतक के निमित्त गाँव में या सम्बन्धियों में कपड़ा, थाली आदि देना भी उपहासास्पद है। सूक्ष्म शरीर इन वस्तुओं का भला क्या उपयोग करेगा? फिर किसी अन्य योनि में जन्म लेने के पश्चात उन वस्तुओं से उसका क्या प्रयोजन हो सकता है? वस्तुत: इनका प्रयोजन समाज के अशक्त व्यक्तियों को सहयोग प्रदान करना होना चाहिए। यहाँ यह भी स्मरणीय है कि दान तभी पुण्यफल उत्पन्न कर सकता है, जब वह उत्तम प्रयोजन के लिए उत्कृष्ट व्यक्तियों को दिया जाए। जो धन जिस कार्य में खर्च होता है, उसी के अनुरूप पुण्य उत्पन्न होता है। जब दान का पैसा सत्कार्य में लगा ही नहीं, तो पुण्यफल किस बात का मिलेगा? आज पितरों के नाम पर धन की बर्बादी होती जा रही है। विवेक का तकाजा यह है कि दान के नाम पर धन का दुरूपयोग न हो, वरन् भावनात्मक लोक मंगल का प्रयोजन पूरा हो। मृतात्मा के पुण्य निमित्त सफल आयोजन सम्पन्न करें। स्वर्गीय आत्मा की स्मृति में कोई शुभ कार्य का आरम्भ करें, जिससे समाज का हित होता हो और उस हित का पुण्य चिरकाल तक पितर को मिलता रह सकता हो। जिनालय का जीर्णोद्धार करवाना, धर्मशाला बनवाना, शिक्षण व्यवस्था में योगदान देना, पाठशाला, पुस्तकालय आदि खुलवाना ये पुण्यमय कार्य हैं। मृत्युभोज के स्थान पर यदि ये कार्य किए जाएं तो नि:सन्देह पुण्यफल चाहने वालों को सुन्दर परिणाम हासिल होने के साथ-साथ धन का सद्व्यय भी हो सकेगा।36
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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