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________________ अन्त्य संस्कार विधि का शास्त्रीय स्वरूप ...327 अन्त्य संस्कार विधि का तुलनात्मक अध्ययन जैन एवं हिन्दू अवधारणा में अन्त्येष्टि संस्कार का महत्त्व सदाकाल से रहा है, अतएव विधि-विधानों का भी प्राबल्य है। इस संस्कार की तुलनात्मक दृष्टि से विचारणा की जाए, तो बहुत-सी स्पष्टताएँ उभर आती हैं। नाम की अपेक्षा - श्वेताम्बर एवं वैदिक दोनों धर्मों में इस संस्कार के नाम को लेकर आंशिक भिन्नता है। श्वेताम्बर में 'अन्त्य' एवं वैदिक में 'अन्त्येष्टि' कहा गया है। इन दोनों वर्गों में अर्थ विषयक भिन्नता भी परिलक्षित होती है। श्वेताम्बर मत में अन्तिम संस्कार से तात्पर्य अन्तिम आराधना यानी मृत्यु के पूर्व की आध्यात्मिक आराधना, यह अर्थ भी लिया गया है, जबकि वैदिक मत में मृत्युकालीन एवं मरणोत्तरकालीन- इन दो कृत्यों का ही समावेश किया गया है। क्रम की अपेक्षा- इस संस्कार का क्रम दोनों में समान है। दोनों परम्पराओं ने इसे सोलहवें संस्कार के रूप में मान्य किया है। दिगम्बर ग्रन्थों में इस संस्कार का अलग से कोई विवेचन नहीं है, अन्तिम आराधना का उल्लेख अवश्य है, जो श्वेताम्बर परम्परा की दृष्टि से अन्त्य संस्कार का ही एक अंग है। काल की अपेक्षा- इस संस्कार के लिए निश्चित अवधि का होना असंभव है, तथापि अन्त्य संस्कार से सम्बन्धित कुछैक क्रियाकलापों को नियत नक्षत्र-वार आदि में करने का उल्लेख किया गया है। यह विधान श्वेताम्बर ग्रन्थों में ही परिलक्षित होता है। मन्त्र की अपेक्षा - श्वेताम्बर परम्परा में इस संस्कार के निमित्त किसी मन्त्र का उल्लेख नहीं है, जबकि वैदिक परम्परा में यज्ञ आदि के अवसर पर मन्त्रोच्चारण के निर्देश हैं। अधिकारी की अपेक्षा - श्वेताम्बर ग्रन्थों में अन्त्य संस्कार के सन्दर्भ में जो अर्थ घटित किया है उस अपेक्षा से निर्ग्रन्थमुनि, जैन ब्राह्मण, स्वजन वर्ग एवं श्रावकवर्ग इसके अधिकारी बताये गए हैं। वैदिक ग्रन्थों में इस संस्कार का अधिकार ब्राह्मण एवं स्वजनादि वर्ग को दिया गया है। सूतक काल की अपेक्षा - श्वेताम्बर, दिगम्बर एवं वैदिक- तीनों परम्पराओं में व्यक्ति एवं वर्ग की अपेक्षा सूतक का काल भिन्न-भिन्न बताया गया है। विधि की अपेक्षा- यदि अन्त्य संस्कार विधि को आधार मानकर तुलना करें, तो स्पष्ट होता है कि कुछ विधि-विधान दोनों परम्पराओं में समान रूप से
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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