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अन्त्य संस्कार विधि का शास्त्रीय स्वरूप ...325
अशौच क्रिया के मुख्य हेतु - यह वैज्ञानिक तथ्य है कि मृतक के शरीर से अशुद्ध कीटाणु निकलते हैं, इसलिए मृत्यु के उपरान्त घर की पूरी सफाई करना आवश्यक होती है। दीवारों की पुताई, जमीन की धुलाई, वस्त्र - सफाई आदि का ऐसा क्रम होता है कि कोई छूत का अंश शेष न रह जाए । यह कार्य तेरहवें दिन में किया यह कार्य परम्परानुसार दसवें, बारहवें या तेरहवें दिन में किया जाता है। सामान्यत: शोक निवारण की क्रिया दूसरे या तीसरे करते है इसे उठामना या उठावना कहते हैं। उठामना का शुद्ध संस्कृत रूप है- उत्थापना अर्थात् शोक को दूर कर परिवारजनों को देव दर्शन एवं व्यापार आदि की सामान्य प्रवृत्तियो से योजित करना उठामना कहलाता है ।
शोक निवारण की अवधि बारह दिन क्यों? सामान्यतया शोकनिवारण की क्रिया तेरहवें दिन की जाती है। यह शोक-मोह की विदाई का विधिवत आयोजन है। मृत्यु के कारण परिवार में शोक-वियोग का वातावरण रहता है, बाहर के लोग भी संवेदना या सहानुभूति प्रकट करने आते रहते हैं। इस क्रम को बारह दिनों में समाप्त कर देना चाहिए। यह अवधि मनोविज्ञान के सिद्धान्त पर आधारित है। किसी घनत्वाकर्षण से दूर हटना हठात् संभव नहीं है। इसके लिए शनै: शनै: मन को समझाना होता है और वह मन बारह दिन की अवधि में तटस्थ रहने हेतु काफी कुछ तैयार हो जाता है। दूसरा कारण यह लोकाचार प्रवृत्ति है, अत: शोक मनाने के लिए बारह दिन की अवधि पर्याप्त है। इस प्रकार यह विधान शोक सन्ताप एवं मोह, माया आदि को दूर करने के हेतु से किया जाता है।
इसी तरह पंचबलि विधान, पितृआह्वान, तर्पण आदि के उद्देश्य एवं प्रयोजन भी विचारणीय हैं।
मृत्युभोज - एक रूढ़िवादी परम्परा
सनातन धर्म की प्राचीन परिपाटी में मरणोत्तर संस्कार के अवसर पर 'वृषभोत्सर्ग' किया जाता था। एक बछड़ा पितर के नाम पर साँड बनाकर छोड़ते थे, जो गौओं के झुण्ड में रहकर उनकी हिंसक पशुओं से रक्षा करे और सन्तानोत्पत्ति द्वारा गौ कुल का संवर्धन करता रहे। पितर की स्मृति में ऐसी पुण्य परम्परा का आरम्भ करना, जिससे समाज का हित होता हो, वृषभोत्सर्ग का मूल उद्देश्य था।