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________________ 324...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन मस्तिष्क को सीमाबद्ध न रखें, वह संकुचित न रहे, अपितु व्यापकता, विशालता, विराटता का रूप धारण करे-इस तथ्य का प्रतिपादन करने के लिए कपाल-क्रिया का कर्मकाण्ड करते हैं। सिर की खोपड़ी फोड़कर उसके भीतर भरे विचार संस्थान को यह अवसर देते हैं और जनमानस को यह प्रेरित करते हैं कि वह एक छोटी-सी परिधि के भीतर ही सोचता न रहे, वरन् विश्व मानव की विभिन्न समस्याओं को ध्यान में रखते हुए अपना कर्तव्य पथ निर्धारित करे। मृत और जीवित सभी के लिए मानसिक संकीर्णता हानिकारक है तथा सोचने का दायरा विस्तृत हो यही इस क्रिया का लक्ष्य है। यह क्रिया अन्त्येष्टि की समाप्ति पर की जाती है।35 अस्थि विसर्जन की परम्परा क्यों? अन्त्येष्टि के बाद अवशेष अस्थियों को एकत्रित करके उन्हें किसी पुण्य तीर्थ में विसर्जित करने की परिपाटी है। इसका उद्देश्य है जीवन का कण-कण सार्थक हो, जीवन में धर्म परमाणुओं का संचार हो क्योंकि इस मानव जीवन का चरम लक्ष्य आत्म स्वरूप को प्रकट करना है। उसकी सम्प्राप्ति धर्म साधना के बिना असंभव है, अत: जीवन की सार्थकता को बनाए एवं बढ़ाए रखने के निमित्त शरीर के अवशेष पुण्य क्षेत्र में डाले जाते हैं। चिता-भस्म उठाना आवश्यक क्यों? दाह क्रिया के तीसरे दिन चिताभस्म एवं अस्थियाँ उठा ली जाती हैं। चिता-भस्म को उठाने एवं किसी अन्य स्थल पर विसर्जित करने का ध्येय यह है कि पारिवारिक सदस्यों और सम्बन्धियों का उस व्यक्ति के प्रति रहा हुआ मोह भाव समाप्त हो जाए, क्योंकि पुन:-पुन: भस्म-कण को देखने से भी मोहोदय हो सकता है अत: शारीरिक आसक्ति से निवृत्त होना भी इस क्रिया का उद्देश्य रहा है। पिण्डदान जरूरी क्यों? हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार मरने के बाद भी दिवंगत आत्मा का घर के प्रति मोह-ममता का भाव बना रहता है। यह ममता उसकी भावी प्रगति के लिए बाधक है, अत: पिण्डदान क्रिया का उद्देश्य दिवंगत जीव को अपने भविष्य की तैयारी में लगने के लिए और वर्तमान कुटुम्ब से मोह-ममता छोड़ने के लिए प्रेरणा देना है, क्योकि बन्धन टूटने पर ही मुक्ति होती है। पिण्डदान द्वारा मृतात्मा को आवश्यक सामग्री प्रदान कर इस परिवार से छुटकारा दिलाया जाता है और भावी जीवन के सुखमय निर्माण एवं निर्वाह के लिए एक मार्ग प्रशस्त किया जाता है।
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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