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316... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन
करे, अनशन का फल बताए । उपस्थित साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका रूप चतुर्विध संघ प्रभु भक्ति एवं गीत-नृत्य आदि उत्सव करें। ग्लान श्रावक जीने या मरने की इच्छा का त्याग कर समाधि पूर्वक रहे। आयु पूर्ण होते समय पंचपरमेष्ठी का स्मरण करते हुए नश्वर देह का त्याग करे ।
अन्तिम संस्कार की प्रचलित विधि
श्वेताम्बर मतानुसार अनशनधारी के मृत देह का विसर्जन निम्न विधि पूर्वक करें - 20
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सर्वप्रथम मृत्यु प्राप्त ग्लान को कुश की शय्या पर स्थापित करें। • फिर श्रावक ब्राह्मण वर्ग का हो, तो सभी ब्राह्मण शिखा छोड़कर सम्पूर्ण सिर, दाढ़ी, मूंछ का मुंडन करवाएं। किन्हीं मत में क्षत्रिय एवं वैश्य के लिए भी यही विधान कहा गया है । शूद्र को मुंडन करवाने का निषेध है। • आचारदिनकर के अनुसार ज्ञातव्य है कि शव की संस्कार क्रिया अपने अपने वर्ण वाले ज्ञातिजनों को ही करना चाहिए, अन्यवर्णी ज्ञातिजनों से उसका स्पर्श भी नहीं करवाना चाहिए। • पूर्वोक्त मुंडन आदि कृत्य हो जाने पर मृतदेह का तेल आदि से मर्दन करें। • फिर सुगंधित जल द्वारा स्नान करवाएं। • गंध व कुंकुम आदि से मृतदेह का विलेपन करें तथा माला पहनाएं। • अपने कुल के योग्य वस्त्र एवं आभूषण से विभूषित करें।
• उसके बाद नवीन काष्ठ या कुश का संथारा (पालकी) बनाएं। • उस संथारा पर उत्तम जाति का वस्त्र बिछाएं। • फिर शव को गृहस्थ के धर्मोपकरण सहित शय्या पर स्थापित करें। • यदि मृत्यु नक्षत्र में मरण हुआ हो, तो पूर्वनिर्दिष्ट नक्षत्रों के अनुसार गृहस्थवेश की प्रतिकृति स्वरूप कुश के दो या एक पुतला बनाएं। • तदनन्तर विविध प्रकार के वस्त्र, रत्न, माला आदि द्वारा प्रासाद जैसी भव्य आकृति (पालकी) निर्मित करें, फिर मृतदेह को शय्या सहित उसमें स्थापित करें।
• उसके बाद मृतक के चार स्वजनवर्ग, अपने परिजनों के साथ पालकी को कंधों पर उठाकर श्मशानभूमि में लाएं। शव का मस्तक उत्तरदिशा की ओर रखते हुए चिता पर स्थापित करें, फिर पुत्र आदि अग्नि संस्कार करें।
• यदि उस बालक की मृत्यु हुई हो, जिसने अभी तक अन्न नहीं खाया है, तो उस मृत बालक का अग्नि संस्कार न करके, भूमि संस्कार (भूमि में