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अन्त्य संस्कार विधि का शास्त्रीय स्वरूप ...315 केवलि प्ररूपित धर्म-इन चार की शरण स्वीकार करवाए, दुष्कृत की गर्दा और सुकृत की अनुमोदना करवाए। अठारह पाप स्थान सेवित न करने का त्रिकरणत्रियोग पूर्वक परित्याग करवाए।18
अनशन ग्रहण- तत्पश्चात संलेखनाग्राही के आय का क्षय जानकर सागार या निरागार भवचरिम का प्रत्याख्यान करवाए। सागार भवचरिम में पानी का आगार रखा जाता है, जबकि निरागार भवचरिम में चारों प्रकार के आहार का त्याग करवाया जाता है।19
सर्वप्रथम सागार अनशन ही ग्रहण करवाना चाहिए तथा यह अनशन भी संघ, कुटुम्बी एवं राजा आदि की अनुमति लेकर ग्रहण करवाना चाहिए। अनशन प्रत्याख्यान करने के पूर्व ग्लान (आराधक)शक्रस्तव और तीन बार नमस्कारमन्त्र का उच्चारण करे। उसके बाद गुरु 'सागारी भवचरिम प्रत्याख्यान' का पाठ उच्चरित करे और ग्लान अर्थ पूर्वक उस पाठ का अवधारण करें। सागारी- अनशन ग्रहण का पाठ निम्न है___ "भवचरिमं पच्चक्खामि तिविहंपि आहारं असणं खाइमं साइमं अनत्थणाभोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि।" ___आयु मुक्षय होने का अन्तर्मुहूर्त शेष रहे, उस समय निरागार-भवचरिम का प्रत्याख्यान करवाना चाहिए। निरागार अनशन ग्रहण का पाठ यह है
"भवचरिमं निरागारं पच्चक्खामि सव्वं असणं, सव्वं पाणं, सव्वं खाइमं, सव्वं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं अईयं निंदामि, पडिपुन्नं संवरेमि, अणागयं पच्चक्खामि, अरिहंत सक्खियं, सिद्धसक्खियं, साहुसक्खियं, देवसक्खियं, अप्पसक्खियं वोसिरामि।" उसके बाद निम्न गाथा का उच्चारण करवाए
जइ में हुज्ज पमाओ, इमस्स देहस्सिमाइ वेलाए ।
आहार उवहि देहं, तिविहं तिविहेण वोसिरियं ।। उसके पश्चात गुरु 'नित्थारपारगा होहि' ऐसा बोलते हुए संघ सहित वासचूर्ण अक्षत आदि का ग्लान के सन्मुख प्रक्षेपण करें। फिर अनशनधारी शुभ भावनाओं द्वारा आत्मा की शान्ति निमित्त 'अट्ठावयंमि उसहो' इत्यादि तीर्थ स्तुति पढ़ें। ‘चवणंजम्मभूमि' इत्यादि स्तव बोलें। गुरु निरन्तर तीन लोक में रहे हुए जिन चैत्यों का व्याख्यान करे, अनित्य आदि बारह भावनाओं का उपदेश