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________________ 314...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन अन्यथा शुभ दिन देखकर आराधना प्रारंभ करनी चाहिए। देववन्दन- अन्तिम आराधना के दिन सर्व संघ को आमन्त्रित करें। फिर ग्लान व्यक्ति को जिनप्रतिमा का दर्शन करवाएं। फिर सम्यक्त्वव्रतारोपण विधि की तरह नन्दी क्रिया करें। उसमें चतुर्विध संघ के साथ गुरु अनशनग्राही को देववन्दन करवाएं। शान्तिनाथ, शान्तिदेवता, क्षेत्रदेवता, भुवनदेवता, समस्त वैयावृत्य कर देवी-देवताओं की आराधना के निमित्त एक-एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग करवाएं और उसे पूर्णकर उनकी स्तुति बोलें। उसके बाद शक्रस्तव एवं अजितशान्तिस्तव बोलें। फिर आराधना देवता के निमित्त चार 'लोगस्ससूत्र' का कायोत्सर्ग करवाकर प्रकट में पुन: लोगस्ससूत्र बोलें, तथा आराधना देवी की स्तुति कहें।7. यस्याः सान्निध्यतो भव्या, वांछितार्थप्रसाधकाः । श्री मदाराधना देवी, विघ्नवातापहास्तुषः ।। वासदान- तदनन्तर आचार्य वासचूर्ण को अभिमन्त्रित करें। फिर उत्तम आराधना के लिए आराधक के मस्तक पर उसका निक्षेप करें। आलोचनादान- उसके बाद बाल्यकाल से लेकर समस्त प्रकार के पापों की उससे आलोचना करवाए एवं अकरणीय पाप कृत्यों का त्याग करवाए तथा जन्म-जन्मान्तरों में किए गए दुष्कृत्यों का मिथ्या दुष्कृत दिलवाएं। क्षमायाचना- तत्पश्चात अनशनग्राही श्रावक को नमस्कारमंत्र के स्मरण पूर्वक चतुर्विध संघ से क्षमायाचना करवाएं, 'आयरिय उवज्झाय' 'खामेमि सव्व जीवे' की गाथा बुलवाएं, क्योंकि क्षमायाचना के बिना आराधना सफल नहीं होती है। उसके बाद आराधक गुरुजनों को वस्त्र आदि का दान करें। श्रीसंघ का पूजा-सत्कार करें। फिर पुत्रादि स्वजनों को स्नात्र महोत्सव, ध्वजारोपण आदि कृत्य करने का निर्देश दें। सात क्षेत्रों में यथाशक्ति द्रव्य का विनियोग करवाएं। सम्यक्त्व ग्रहण- फिर पूर्वोक्त विधि पूर्वक तीन बार सम्यक्त्व पाठ को ग्रहण करें। इस पाठ द्वारा सम्यक्त्व व्रत में स्थिर बन जाए। बारहव्रत ग्रहण- पुन: पूर्व निर्दिष्ट विधि के साथ पाँच अणुव्रत या बारहव्रत ग्रहण करें। व्रत आलापक में 'जाव नियमं पज्जुवासामि' के स्थान पर 'जावज्ज्जीवाए' शब्द का उच्चारण करें। चतुःशरण ग्रहण- उसके बाद आराधक को अरिहंत, सिद्ध, साधु एवं
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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