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अन्त्य संस्कार विधि का शास्त्रीय स्वरूप ...317
गाढ़ना) करना चाहिए। . उसके बाद शमशान भूमि में प्रेतात्माओं को दान दें। • फिर शरीर शुद्धि करके अन्य मार्ग से अपने गृह की ओर लौटें। • तीसरे दिन पुत्र आदि परिजन आदि चिताभस्म को नदी में प्रवाहित करें। उसकी अस्थियों को तीर्थ स्थल में विसर्जित करें। • अगले दिन स्नान करके शोक को दूर करें उसी दिन जिनालय में जाकर चैत्यवंदन करें, जिनदर्शन करें। फिर उपाश्रय में गुरु को वंदन करें, गुरु से धर्मदेशना सुनें। • फिर सभी अपने-अपने कार्यों में प्रवृत्त हो जाएं।
वैदिक- वैदिक साहित्य में गृहस्थ की अन्त्य संस्कार विधि निम्न प्रकार से उल्लिखित है
सर्वप्रथम यह ध्यातव्य है कि पूर्ववर्ती वैदिक साहित्य में मृत्यु के समय एवं मृत्यु के बाद की क्रियाओं का ही उल्लेख है, मृत्यु के पूर्व सम्पन्न की जाने वाली क्रियाओं का निर्देश नहींवत् हुआ है। सामान्यतया “एक हिन्दू जब यह अनुभव करता है कि उसकी मृत्यु समीप आ गई है तो वह अपने सम्बन्धियों
और मित्रों को निमन्त्रित करता है और उनसे मैत्रीभाव पूर्वक बातचीत करता है तथा अपने भावी-कल्याण के लिए वह ब्राह्मणों और निर्धनों को दान देता है।21' हिन्दुओं में मृत्यु के समय गौ का दान देना महत्त्वपूर्ण माना गया है।
आश्वलायन के अनुसार जब मृत्यु का समय निकट आ जाता है, तो रोगी का शरीर स्वच्छ बालूदार भूमि पर रखा दिया जाता है। इसके पश्चात् तीन अग्नियों या एक अग्नि को रख जाता है। उस गार्हपत्य अग्नि के समीप अर्थी तैयार की जाती है।22 इस पर रूग्ण व्यक्ति को दक्षिण दिशा की ओर मुख रखते हुए लेटा दिया जाता है। फिर उसके कानों के समीप वेद मन्त्रों का पाठ किया जाता है। आजकल मृत व्यक्ति के कानों में भगवद् गीता एवं रामायण के श्लोकों का पाठ किया जाता है। इस कृत्य को एक दृष्टि से अन्तिम आराधना की संज्ञा दे सकते हैं। मृत्यु सम्बन्धी विधियाँ
होम - हिन्दू समाज यज्ञ प्रधान है। किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर यज्ञ किया जाता था, ऐसा उल्लेख कुछ ग्रन्थों में स्पष्ट रूप से प्राप्त होता है।
अर्थी- गृह्यसूत्रों के अनुसार होम क्रिया के उपरान्त उदुम्बर की लकड़ी की एक अर्थी बनाई जाती है। उसके ऊपर मृगचर्म का एक टुकडा बिछाते हैं,