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298...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन संयोग से उत्पन्न संतान बलवान होती है। इस कथन से सूचित होता है कि जैन साहित्य में बाल विवाह और वृद्ध विवाह का निषेध है। इस प्रकार तीनों परम्पराओं में काल सम्बन्धी मान्यता को लेकर विविधता है। ___मन्त्र की दृष्टि से- जैन एवं हिन्दू-दोनों परम्पराओं की विवाह विधि में मन्त्रों की बहुलता है, किन्तु मन्त्र पाठ एवं मन्त्र पद्धति में अन्तर है। श्वेताम्बर परम्परा में निम्न क्रियाओं के सन्दर्भ में मन्त्रों का उल्लेख मिलता है- सगाई करने का मन्त्र, बरात के समय बोले जाने वाला ग्रह शान्ति मन्त्र, हस्त बन्धन मन्त्र, वेदी स्थापना मन्त्र, तोरण प्रतिष्ठा मन्त्र, अग्नि स्थापना मन्त्र, हवन मन्त्र, फेरे के चार मन्त्र, करमोचन मन्त्र आदि। दिगम्बर मतानुसार विवाह संस्कार में इन अवसरों पर मन्त्र बोले जाते हैं- कंकण बंधन मन्त्र, पूजा विधि के मन्त्र, कन्या प्रदान मन्त्र, हवन योग्य विविध मन्त्र, ग्रन्थि बंधन मन्त्र, हथलेवा मन्त्र, फेरे के मन्त्र, आशीर्वाद-मन्त्र आदि। वैदिक-परम्परा के मन्त्र भी संस्कृत भाषा में हैं किन्तु वैदिक परम्परा के अनुरूप होने के कारण उनकी तुलना करना असंभव है।
विधि की दृष्टि से- • श्वेताम्बर आचार्यों ने सगाई करने को कन्यादान कहा है, दिगम्बरों ने इसी अर्थ में इसको 'वाग्दान' शब्द से सम्बोधित किया है, जबकि वैदिक धारा में वाग्दान एवं कन्यादान-दोनों विधियों को भिन्न-भिन्न रूप में मान्य किया है।
. श्वेताम्बर मत में विवाह लग्न के समय चार फेरे देने का विधान है, दिगम्बर परम्परा में सात फेरे लगाने का निर्देश है वैदिक मत में अग्नि प्रदक्षिणा करने का उल्लेख तो स्पष्ट है किन्तु वह प्रदक्षिणा कितनी बार की जाती है? इसका वर्णन पढ़ने में नहीं आया है।
• जैन एवं हिन्दू दोनों परम्पराओं में अन्तिम फेरा या तीन फेरे शेष रहने के पूर्व वर और कन्या दोनों एक दूसरे के प्रति सात-सात प्रतिज्ञाएँ स्वीकार करते हैं।
. श्वेताम्बर परम्परा में विवाह के दिन षष्ठीमाता की पूजा की जाती है इसी के साथ शान्तिक-पौष्टिक कर्म द्वारा जिनप्रतिमा की पूजा भी सम्पन्न करते हैं, जबकि दिगम्बर-परम्परा में विनायक स्थापना एवं उसकी पूजा के साथ-साथ
और भी पूजा विधान किए जाते हैं। वैदिक मतानुसार विनायक एवं कामदेव की स्थापना की जाती है।